श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद वरवरमुनये नमः
श्रीवैष्णव सम्प्रदाय में आऴ्वारों के पासुरों और आचार्यों की श्रीसुक्तियों को पूजा जाता है। हमारे पूर्वजों ने अपने आप को सदा आऴ्वार् और आचार्यों की दिव्य वाणी में संलग्न कर रखा था। हमारे पूर्वजों के कृत्य ही हमारे लिए उचित काम-काज हैं। आऴ्वार् और आचार्यों के दिव्य बोली का यथासंभव पाठ करने में मन लगाना और उन दिव्य वचनों का पालन करना हमारे लिए श्रेष्ठ है।
हम प्रस्तुत कर रहे हैं ‘दिव्यप्रबंधम् -प्रारंभिक’, उन लोगों के हेतु, जो सर्वेश्वर की कृपादृष्टि से ज्ञान और भक्ति दोनों प्राप्त करने वाले आऴ्वारों द्वारा करुणापूर्वक रचित दिव्यप्रबंधम् को सीखने के लिए इच्छुक हैं। इसमें तनियन् (पोदु तनियन्), तिरुप्पल्लाण्डु, कण्णिणुन् सिऱुत् ताम्बु, तिरुप्पावै और साटृमुऱै का हमने सरल व्याख्या सहित समाविष्ट किया है। हमारा सबसे निवेदन है कि इसका पूर्णतः उपयोग करें।
हमने कुछ मूल जानकारियाँ भी प्रदान किए हैं जैसे दिव्यप्रबंधम् के विवरण, १०८ दिव्यक्षेत्र की सूची, आऴ्वार्/आचार्यों के तिरुनक्षत्र (जन्म नक्षत्र) और अनध्ययन काल के दिनचर्या, जो सब के समझने और अनुष्ठान करने के लिए सुलभ होंगे।
- ४००० दिव्यप्रबंधम्
- १०८ दिव्यक्षेत्र
- आऴ्वार/आचार्य तिरुनक्षत्र
- अनध्ययन काल
- सामान्य तनियन् (पोदु तनियन्) – मंगलाचरण
- तिरुप्पाल्लाण्डु
- कण्णिणुन् सिऱुत् ताम्बु
- तिरुप्पळ्ळियेऴुच्चि
- तिरुप्पावै
- साटृमुऱै
अडियेन् वैष्णवी रामानुज दासी
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