तुला मास अनुभव

श्री:
श्रीमते शठकोपाये नम:
श्रीमते रामानुजाये नम:
श्रीमद वरवरमुनये नम:
श्री वानाचल महामुनये नम:

तुला मास श्री वैष्णवों के लिए बहुत ही विशेष है। इसके बहुत से कारण है। आइये हम इस माह से सम्बंधित कुछ अद्भुत तथ्यों को देखते है और इस माह में आने वाले अत्यंत सुंदर समय के लिए स्वयं को तैयार करते है।

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  • मुदलाळवार (प्रथम 3 आलवार – सरोयोगी आलवार, भूतयोगी आलवार और महद्योगी आलवार) इसी पावन माह में अवतरित हुए थे। वे द्वापर – कलियुग की संधि में प्रकट हुए (युग संधि) और अन्य आलवारों के अनुसरण हेतु आधार की स्थापना की। इसी वजह से, तुला माह, श्री वैष्णवों के लिए वर्ष के प्रथम माह के रूप में प्रसिद्ध है- क्यूंकि इसी माह में प्रथम आलवारों का अवतरण हुआ, जिसके फल स्वरुप आज की हमारी अत्यंत वैभवशाली संपत्ति- दिव्य प्रबंध अर्थात अरुलिच्चेयल का उत्थान हुआ। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी अपनी उपदेश रत्ना माला में, मुदलाळवारों के अवतार की बहुत प्रशंसा की है, जो भगवान श्रीमन्नारायण की निर्हेतुक कृपा द्वारा मात्र जीवात्माओं के उद्धार के लिए, भगवान की दिव्य कृपा से दोषरहित ज्ञान से परिपूर्ण थे।

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  • अन्य गौरवशाली पक्ष यह है कि जैसे यह माह दिव्य प्रबंध परंपरा के प्रारंभ का महीना है, उसी तरह यह माह श्रीवरवरमुनि स्वामीजी का पावन अवतरण दिवस भी है – जो ओराण वालि आचार्य परंपरा को संपूर्ण करने वाले माने जाते है। तुला मास, मूल नक्षत्र के अति पावन दिवस पर श्री रामानुज स्वामीजी ने दिव्य प्रबंधन और उसके व्याख्यानों पर केन्द्रित, उनकी महिमा के विस्तार हेतु पुनरावतार लिया। श्री रामानुज स्वामीजी तमिल और संस्कृत वेद/ वेदान्त में पारंगत थे, परंतु उनका समय संस्कृत वेद/वेदांत द्वारा भगवान श्रीमन्नारायण के परतत्व के निर्णय में व्यतीत हुआ। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के स्वरुप में अपने पुनरावतार में, तमिल और संस्कृत वेद/ वेदांत में समान पारंगतता के साथ ही, उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन तिरुवाय्मौली (और अन्य दिव्यप्रबंध), व्याख्यान (ईदू, आदि) और रहस्य ग्रंथों की महिमा के प्रसार में व्यतीत किया।

श्रीरामानुज स्वामीजी – श्रीवरवरमुनि स्वामीजी, श्रीपेरुम्बुदुर

श्रीरामानुज स्वामीजी – श्रीवरवरमुनि स्वामीजी, श्रीपेरुम्बुदुर

अब हम, इस पावन माह में अवतरित हुए पूर्वाचार्यों की महिमा का संक्षेप में वर्णन करेंगे।

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  • मुदलाळवार – प्रथम आलवार जिनका जन्म तोंडिर मंडल (कांचीपुरम और आस-पास के दिव्य देशों) के पुष्पों में हुआ – उन्होंने बहुत सुंदरता से भगवान श्रीमन्नारायण के परतत्व की स्थापना की है। उनके अर्चावतार अनुभव को https://granthams.koyil.org/2012/10/archavathara-anubhavam-azhwars-1/ पर देखा जा सकता है।
    • सरोयोगी आलवार (तुला मास, श्रवण नक्षत्र) ने अपनी मुदल तिरुवंताधि के प्रथम पासूर में समझाया कि भगवान उभय विभूति के नाथ है (लौकिक और अलौकिक जगत के एकमात्र स्वामी)।
    • भुतयोगी आलवार (तुला मास, धनिष्ठा नक्षत्र) ने अपने इरण्दाम तिरुवंताधि के प्रथम पासूर में समझाया है कि भगवान एक मात्र श्रीमन्नारायण है, उनके अतिरिक्त और कोई नहीं।
    • महद्योगी आलवार (तुला मास, शतभिषक् नक्षत्र) ने अपने मुंराम तिरुवंताधि के प्रथम पासूर में समझाया है कि श्रीमन्नारायण (श्री महालक्ष्मीजी के दिव्य पति है)।
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  • पिन्भजहगीय पेरुमाल जीयर (तुला मास, शतभिषक् नक्षत्र) नम्पिल्लै/ कलिवैरीदास स्वामीजी के प्रिय शिष्यों में एक है। वे यहाँ श्रीरंगम में कलिवैरीदास स्वामीजी के सेवा कैंकर्य में इतनी आत्मीयता से संलग्न थे कि परमपद का असीम आनंद त्यागने में भी संकोच नहीं करते। वे 6000 पदी गुरु परंपरा प्रभाव के रचयिता है।

7nampillai-pinbhazakiya-perumal-jeer-srirangamपिन्भजहगीय पेरुमाल जीयर, श्रीकलिवैरीदास स्वामीजी के चरणकमलों में

  • नदुविल तिरुविधि पिल्लै भट्टर (तुला मास, धनिष्ठा नक्षत्र) श्रीकुरेश स्वामीजी के वंशज थे और वे नम्पिल्लै/ श्रीकलिवैरीदास स्वामीजी के प्रिय शिष्य हुए।
  • पिल्लै लोकाचार्य (तुला मास, श्रवण नक्षत्र) स्वयं देव पेरुमाल भगवान के अवतार है और नम्पिल्लै/ श्रीकलिवैरीदास स्वामीजी की कृपा से वे वदक्कू तिरुविधि पिल्लै के दिव्य पुत्र के रूप में अवतरित हुए। वे अत्यंत कृपावान आचार्य थे जिन्होंने रहस्य ग्रंथों का स्पष्टता से लिपिबद्ध किया। उनके मुमुक्षुप्पडि , तत्व त्रय और श्रीवचन भूषण ग्रंथों को कालक्षेप ग्रंथों के रूप में जाना जाता है और वे सत संप्रदाय के सभी सिद्धांतों के सार का वर्णन करते है। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने इन 3 महत्वपूर्ण ग्रंथों पर व्याख्यान की रचना की है जो इनके सार और सिद्धांतों को अत्यंत सुंदरता से विवेचन करती है।

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  • कुर कुलोत्तम दासर (तुला मास, आद्रा नक्षत्र) पिल्लै लोकाचार्य के प्रिय शिष्य है। वे तिरुवाय्मौली पिल्लै के परिवर्तन कर उन्हें संप्रदाय के अग्रणी के रूप में स्थापित करने में सहायक थे।

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  • विलान्चोलै पिल्लै (तुला मास, उत्तराषाढा नक्षत्र) पिल्लै लोकाचार्य के प्रिय शिष्य है। वे तिरुवनंतपुरम में सेवा-कैंकर्य किया करते थे और उन्होंने तिरुवाय्मौली पिल्लै को श्रीवचन भूषण और अन्य महत्वपूर्ण सिद्धांतों की शिक्षा प्रदान की। वे सप्त गाथा नामक दिव्य तमिल प्रबंध के रचयिता है जो श्रीवचन भूषण दिव्य शास्त्र में दर्शाये गए आचार्य के वैभव का वर्णन करती है।

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आय् जनन्याचार्यर् (तुला मास, पूर्वाषाढा नक्षत्र) तिरुनारायणपुर के महान विद्वान् थे। सेल्व नारायण भगवान के प्रति उनके विशेष ध्यान के फलस्वरुप, भगवान सानुराग अपनी माता के समान उनका आदर किया करते थे। वे श्रीवरवरमुनि स्वामीजी से मिले और उन्हें आचार्य हृदयं के सिद्धांत समझाए। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी और आय् जनन्याचार्यर् का एक दुसरे के प्रति आदर और प्रेम भाव था।11ay-jananyacharyar

  • श्रीवरवरमुनि स्वामीजी (तुला मास, मूल नक्षत्र) हमारे सत्-संप्रदाय के अत्यंत कृपालु और दिव्य आचार्य है। श्रीरंगनाथ भगवान ने स्वयं अत्यंत प्रेम से उन्हें अपना आचार्य स्वीकार किया। उन्हें पेरिय जीयर के रूप में भी जाना जाता है और विसत्वाक शिखामणि (दिव्य साहित्य में पारंगत महानुभावों में मुकुट मणि के समान) के रूप में प्रसिद्ध है।

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  • एरुम्बी अप्पा (तुला मास, रेवती नक्षत्र) श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के प्रमुख शिष्यों में एक है। उन्होंने श्रीवरवरमुनि स्वामीजी की दिव्य दिनचर्या का वर्णन करते हुए पूर्व-दिनचर्या और उत्तर-दिनचर्या स्तोत्रों की रचना की। उन्होंने विलक्षण मोक्ष अधिकारी निर्णय नाम के एक सुंदर ग्रंथ की रचना की जो हमारे सतसंप्रदाय के अत्यंत गहरे सिद्धांतों के अध्ययन से होने वाले संशय को स्पष्ट करते है।

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  • श्री पेरुम्बुदुर आदि यतिराज जीयर (तुला मास, पुष्य नक्षत्र) श्रीपेरुम्बुदुर मठ के प्रथम जीयर हुए। उनकी तनियन से हम यह समझ सकते है कि उनका श्रीवरवरमुनि स्वामीजी, वानमलै जीयर और अन्य महान आचार्यों से दिव्य संबंध था।

जैसा की हमने देखा, इस माह का बहुत वैभव है और विभिन्न दिव्य देशों में आलवारों और आचार्यों के बहुत से अद्भुत उत्सव मनाये जाते है। आगामी लेखों की श्रृंखला में, हम इस माह में अवतरित हुए अपने पूर्वाचार्यों और उनकी रचनाओं के विषय में अधिक जानेंगे।

अदियेन भगवती रामानुजदासी

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