श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:
श्रीवैष्णव सम्प्रदाय में, श्रीरामायण को एक महत्वपूर्ण शास्त्र के रूप में प्रकाशित किया गया है। इसमें भगवान, श्रीमहालक्ष्मीजी और उनके भक्तों की महिमा को बड़े मनोहर रूप से दिखाया गया है। क्योंकि इसमें शरणागति का सिद्धांत बहुत स्पष्ट रूप से प्रकट हुआ है, इसलिए इसे शरणागति शास्त्र के रूप में प्रकाशित किया जाता है।
श्रीमहालक्ष्मीजी के पूज्य वर, श्रीमन्नारायण भगवान ने देवताओं की प्रार्थना स्वीकार की और इस भौतिक संसार में चक्रवर्ती दशरथ के दिव्य पुत्र के रूप में अवतार लिया। इस प्रकार अवतरित होकर, वे मनुष्यों के मध्य रहते हुए भी शुभ गुणों से युक्त बने रहे। सामान्यतः कहा जाता है कि व्यक्ति की महिमा उसके गुणों से होती है। जबकि वे पहले से ही सर्वोच्च भगवान हैं, जो सभी संसार की सृष्टि करते हैं, उनकी रक्षा करते हैं, उनका संहार करते हैं, अच्छा मार्ग दिखाते हैं और इस संसार के सभी निवासियों को मुक्ति प्रदान करते हैं, किंतु श्रीरामावतार में उनके गुणों और सौंदर्य के कारण उन्हें महिमामंडित किया गया और इस संसार के लोगों के लिए पूजनीय बने।
श्रीराम के दिव्य इतिहास को वाल्मिकी भगवान ने बड़ी सुंदरता से आदि काव्य के रूप में प्रस्तुत किया है। वाल्मिकी भगवान जिन पर ब्रह्माजी का आशीर्वाद है, उन्होंने भगवान के हर कार्य का सुंदर ढंग से वर्णन किया है। इसे ही श्रीरामायण के नाम से जाना जाता है। आचार्य परम्परा में, परम दयालु श्रीपेरियवाच्चान पिळ्ळै (श्री कृष्ण) स्वामीजी, जिन्हें व्याख्यान चक्रवर्ती के रूप में महिमामंडित किया जाता है, इनके द्वारा श्रीराम के इतिहास का वर्णन करते हुए एक सुंदर गद्य प्रबंध की रचना हुई है, जिसका नाम पासुरप्पड़ी रामायण है, जो आऴ्वारों के पाशुरों के दिव्य शब्द/वाक्यांश से बना है। इस प्रबंध का अनुसरण करते हुए, हम यहाँ श्रीराम की लीलाओं और उनके तत्त्व का आनंद लेते हैं।
- बाल काण्ड
- अयोध्या काण्ड
- आरण्य काण्ड
- किश्किन्धा काण्ड
- सुन्दर काण्ड
- युद्ध काण्ड
- निष्कर्ष
अडियेन् केशव रामानुज दास
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