वेदार्थ संग्रह:

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

वेदार्थों का संग्रह

श्रीरामानुज स्वामीजी अपने पहले ग्रन्थ “वेदार्थ संग्रह” में, उपन्यास रूप में, वेदार्थों को किस प्रकार से समझना है यह प्रकाशित करते हैं । इस ग्रन्थ में वेदिक लेख पर श्रीरामानुज स्वामीजी का पहिली व्याख्या है। वह वेदिक तर्क शास्त्र और धर्म के सभी मुख्य विचार पर स्पष्ट और संक्षिप्त रूप से  व्यवहार करते है। वह उस तर्क वेदिक शास्त्र के विवादास्पद भाग को पहचान कर और उसमें कोई मतभेद और विरोध न हो ऐसा मार्ग प्रधान करते है। अत: यह कार्य श्रेष्ठ छात्र के लिए महत्वपूर्ण है। कहा गया है कि तिरुमलै में यह ग्रन्थ लिखा गया है – भगवान वेंकटेश की पवित्र निवास।

हम श्रीरामानुज स्वामीजी के प्रार्थना से शुरू करते है।

तिरुमलै में श्रीरामानुज स्वामीजी

श्रीरामानुज स्वामीजी कि प्रार्थना

यो नित्यमच्युत पदाम्बुज युगमरुक्म व्यामोहतः तदितराणि तृणाय मेने ।

अस्मद्गुरोर्भगवतोSस्य दयैक सिन्धो: रामानुजस्य चरणौ शरणं प्रपद्ये ।।

अर्थ: मैं श्रीरामानुज स्वामीजी के दोनों चरण कमलों के शरणागत होता हूँ जो मेरे आचार्य है, जो पूरी तरह श्रेष्ठ गुण वाले है, जो दया के सागर है और भगवान् अच्युत के दिव्य चरण के प्रति उनकी आशा उनको अन्य सभी के प्रति अनिच्छुक बनाती है (वैसे ही जैसे वह व्यक्ति घास के तिनके के प्रति अनिच्छुक होता है जिसकी इच्छा स्वर्ण में है) (अर्थात् भगवत् चरणों के अलावा कोई और इच्छा नहीं है एवं अन्य सभी घास के तिनके के समान है) ।

आधार – https://granthams.koyil.org/vedartha-sangraham-english/

अडियेन भरद्वाज रामानुज दासन्

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