यतिराज विंशति – अवतारिका

३० वें श्री तोदाद्रीपीठाधिपति श्रीमत्परमहंसेत्यादी जगद्गुरू
श्री श्री कलियन् वानमामलै रामानुज जीयर् स्वामीजी

द्वारा अनुगृहीत मङ्गलाशासन पत्र का अंश भाग

 

“भगवद् भाष्यकार श्रीरामानुजस्वामी के प्रति यह स्तोत्र श्रीरम्यजामातृयोगीन्द्र द्वारा रचित है। यद्यपि यह श्लोकों की संख्या की दृष्टि से छोटा स्तुति-ग्रंथ है, तथापि इसमें श्रीवरवरमुनीन्द्र स्वामी का जो भावोद्गार ललित और गम्भीर वाग्गुम्फनके द्वारा हुआ है वह परम प्रशंसनीय बिराजता है। इस श्रेष्ठ स्तोत्र – ग्रंथ के सभी श्लोक हम सबके लिए भी अनुसन्धेय हैं। आलवन्दार माने श्रीयामुनमुनि आदि महाचार्यवर्यों के “अमर्याद: क्षुद्र:” आदि वचनोंका स्मरण कराने वाले पद्य, नैच्यानुसन्धान के द्वारा आविष्कृत उनके असली महत्त्व के दर्पण हैं। “पापे कृते यदि भवन्ति” श्लोक के भाव की जानकारी हमें मिल जाए तो हम पापाचरण से अवश्य निवृत्त हो जाएँगे।

प्रियों, इस यतिराज विंशति का अनुसन्धान, हमारे श्रीवैष्णव सज्जनों के द्वारा, श्रीदेवराजगुरु (एरूम्बियप्पा) विरचित श्रीवरवरमुनीन्द्र पूर्व दिनचर्या तथा उत्तर दिनचर्या के मध्य में किया जाता है। अस्तु; ‘यतिराज विंशति’ स्तोत्र की संगृहीत व्याख्या महाविद्वन्मणि श्रीकांची प्रतिवादिभयंकर जगदाचार्य सिंहासनाधीश श्रीमदण्णगंराचार्यस्वामी द्वारा सरल हिन्दी में कि गयी है।“

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