श्रीवचन भूषण – सूत्रं ११३

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी एक शंका उठाते हैं, “इस प्रकार, यदि स्वयं के वास्तविक स्वरूप के योग्य दासता ही सबसे महत्वपूर्ण है तो शेषी (भगवान) द्वारा अग्रसर करने की प्रतीक्षा करने के विरुद्ध, क्या ऐसे भगवान के प्रति स्वयं प्रयास … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ११२

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका तत्पश्चात् श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी इस सिद्धांत के प्रमाण के रूप में हमें माता सीता के शब्दों का स्मरण कराते हैं। सूत्रं – ११२ अनसूयैक्कु पिराट्टि अरुळिच्चॆय्द वार्त्तैयै स्मरिप्पदु। सरल अनुवाद  उन शब्दों को स्मरण करो जो माता सीता ने … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं १११

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका जब उनसे पूछा गया कि, “क्या ऐसे कोई [लक्ष्मण] नहीं है जिसने श्रीरामायण किष्किन्धा काण्ड ४.१२ के अनुसार कहा, ‘गुणैर्दास्यम् उपागतः’ (श्रीराम के विषय में लक्ष्मण कहते हैं कि मैं उनके गुणों से अभिभूत होकर उनकी सेवा कर रहा … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं ११०

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका जब उनसे पूछा गया कि, “ यह कहाँ देखी है कि भगवान में अच्छे गुणों में अपूर्णता मानते हुए भी भगवद् विषय में उनकी रुचि रही?” तो श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कृपापूर्वक समझाते हैं। सूत्रं – ११० “कॊडिय ऎन्नॆञ्जम् अवन् … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं १०९

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी उस विरोधाभास को दर्शा रहे हैं जो तब उत्पन्न होगा जब उनके द्वारा पहले समझाया गया सिद्धांत स्वीकार नहीं किया जायेगा। सूत्रं – १०९ इप्पडिक् कॊळ्ळादप्पोदु, गुणहीनमॆन्ऱु निनैत्त दशैयिल् भगवत् विषय प्रवृत्तियुम्, दोषानुसंधान दशैयिल् सम्सारत्तिल् … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं १०८

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका जब पूछा गया कि “जैसा कि मून्ऱाम् तिरुवन्दादी १४ में कहा गया है “मऱ्-पाल् मनम् सुऴिप्प मङ्गैयर् तोळ् कै विट्टु नूऱ्-पाल् मनम् वैक्क नॊय्विदम्” (जैसे ही हृदय श्रीमन् नारायण की ओर उन्मुख होता है, स्त्रियों के कंधों के प्रति आसक्ति … Read more

श्रीवचनभूषण – सूत्रं १०७

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका जब पूछा गया “प्राथमिक कारण क्या है?” श्रीपिळ्ळै  लोकाचार्य स्वामीजी कहते हैं “अप्राप्ततैये प्रधान हेतु“। सूत्रं – १०७ अप्राप्ततैये प्रधान हेतु सरल अनुवाद अयोग्यता ही इसका मुख्य कारण है। व्याख्या अप्राप्ततैये एक चेतन (जीव) के स्वरूप अर्थात केवल  भगवान … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं १०६

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका जब उनसे पूछा गया कि, “क्या यही (सांसारिक सुखों के दोषों को देखना) अरुचि का मुख्य कारण है?” तो श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी दयापूर्वक समझाते हैं। सूत्रं – १०६ अदु प्रधान हेतु अन्ऱु। सरल अनुवाद यह प्राथमिक कारण नहीं है। … Read more

श्रीवचनभूषण – सूत्रं १०५

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका भगवान के विशिष्ट स्वभाव के कारण मनुष्य सांसारिक सुखों से अनभिज्ञ हो सकता है; विश्वस्त वृद्धों के उत्तम आचरण का ध्यान करने से मनुष्य विहित और निषिद्ध सुखों के प्रति भयभीत हो सकता है; किन्तु सदा भोगने वाले सांसारिक … Read more

श्रीवचन भूषण – सूत्रं १०४

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरी श्रृंखला << पूर्व अवतारिका श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कृपापूर्वक समझाते हैं कि सौंदर्य आदि तीन प्रकार के प्रपन्नों की विरक्ति का कारण है। सूत्रं – १०४ इवैयुम् ऊट्रत्तैप् पट्रच् चॊल्लुगिऱदु। सरल अनुवाद यह भी प्रत्येक विषय की प्रधानता के आधार पर कहा गया है। … Read more