श्रीवचन भूषण – सूत्रं ९०

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:

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वैकल्पिक रूप से, भले ही ऐसा कार्य (भगवान के लिए अपने जीवन का त्याग करना) साधन का अंश माना जाता है जबकि यह व्यक्ति के अनन्योपायत्व (किसी अन्य साधन में संलग्न न होना) को नष्ट कर देगा लेकिन यह उन लोगों में कोई दोष नहीं उत्पन्न करेगा जो प्रेम से बंधे हैं। इसे स्थापित करने के लिए श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी उन लोगों के कार्यों की व्याख्या कर रहे हैं जो प्रेम से बंधे हैं।

सूत्रं९०

अनन्योपायत्वम्, अनन्योपेयत्वम्, अनन्य दैवत्वम् कुलैयुम्बडियान प्रवृत्ति काणा निन्ऱोमिऱे।

सरल अनुवाद 

हमने ऐसे कर्म देखे हैं जो अनन्योपायत्व (किसी अन्य साधन में संलग्न न होना), अनन्योपेयत्व (किसी अन्य लक्ष्य में संलग्न न होना) और अनन्य दैवत्वम् (किसी अन्य देवता में संलग्न न होना) को नष्ट कर देते हैं। [इसका तात्पर्य यह है कि यदि प्रेम से बंधे हुए लोगों में ऐसा होता है तो इसमें कोई दोष नहीं है]।

व्याख्या 

अनन्योपायत्वम् …

अनन्योपायत्वम् कुलैयुम्बडियान प्रवृत्ति


नोन्बु (व्रतम), मडल् (किसी के प्रति सार्वजनिक रूप से इच्छा प्रकट करना) आदि गतिविधियों में संलग्न होना जैसा कि देखा गया है 

  • नाच्चियार् तिरुमोऴि १.६  तिरुन्दवे नोऱ्-किन्ऱेन (स्पष्टता प्राप्त करने के लिए यह तपस्या करना)
  • नाच्चियार् तिरुमोऴि १.८ नोऱ्-किन्ऱ नोन्बिनैक् कुरिक्कोळ् (मेरी तपस्या पर विचार करो)
  • श्रीसहस्रगीति ५.३.९ “कुदिरियाय् मडलूर्दुम्” (मैं बिना किसी लज्जा के मडल् कर रही हूँ)
  • पेरिय तिरुमोऴि ९.३.९ “ओदि नामम्” (आपका नाम स्मरण करना)
  • सिऱिय तिरुमडल् “ऊरादॊऴियेन् नान् – वारार् पूम् पॆण्णै मडल्” (मैं लंबे ताड़ के पत्तों के साथ मडल् करने से बच नहीं सकती, भले ही नगरवासी मुझे दोषी ठहराएँ)
  • पेरिय तिरुमडल् “उलगऱिय ऊर्वन् नान् – मन्निय पूम् पॆण्णै मडल्” (मैं ताड़ के पत्तो से मडल् का प्रदर्शन करुँगी, जिससे पूरे संसार को पता चल जाएगा)

अनन्योपेयत्वम् कुलैयुम्बडियान प्रवृत्ति

ऐसा न मानकर कि लक्ष्य केवल भगवान को महान बनाना है बल्कि स्वयं के लिए महानता प्राप्त करनी चाहिए जैसा कि कहा गया है

  • पेरिय तिरुमोऴि ९.३.९ “नमक्के नलम् आदलैल्” (यदि यह हमारे लक्ष्य की ओर ले जाता है)
  • तिरुवाय्मोऴि ५.३.१० “तूमलर्त् तण्णन्दुऴाय् मलर् कॊण्डु सूडुवोम्” (हम स्वयं को शुद्ध पुष्पों के साथ शांत, सुंदर तुलसी माला से सजाएँगे)

अनन्य दैवत्वम् कुलैयुम्बडियान प्रवृत्ति

कामदेव को भगवान मानकर उनकी पूजा करना, जैसा कि श्लोक १४ में कहा गया है।

  • नाच्चियार् तिरुमोऴि १.१ “कामदेवा उन्नैयुम् उम्बियैयुम् तॊऴुदेन्” (हे कामदेव! मैं आपको और आपके भाई की पूजा करती हूँ)। 
  • नाच्चियार् तिरुमोऴि १.८ “पेसुवदु ऒन्ऱुण्डु इङ्गॆम्पॆरुमान्” (हे मेरे स्वामी कामदेव! मेरे पास आपको कहने के लिए कुछ है) 

काणा निन्ऱोमिऱे

हमने यह बहुत ज्ञानी व्यक्तियों में देखा है जिनका भगवान के प्रति अगाध प्रेम होता है।

पूर्व वर्णित कार्य [भगवान के दिव्य स्वरूप को क्षति पहुँचना पिळ्ळै तिरुनऱैयूर् अरैयर् द्वारा सहन न कर पाने के कारण अपने प्राण त्याग देना] स्वाभाविक रूप से उपाय के रूप ठहरेगा यद्यपि उन्होंने वह कार्य उपाय के रूप में नहीं किया था; इसके विपरीत, यहाँ वियोग सहन न कर पाने के कारण यह उपाय के रूप में किया गया था; इसलिए, जो लोग भगवान के प्रति प्रेम से बंधे हैं, उनके लिए यह दोष नहीं माना जाएगा। यही अंतर्निहित सिद्धांत है।

अडियेन् केशव रामानुज दास

आधार: https://granthams.koyil.org/2021/04/27/srivachana-bhushanam-suthram-90-english/

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