तनियन् श्लोक
श्रीमद्वरवरमुनि
देवराज गुरु
य: स्तुतिं यतिपतिप्रसादनीं व्याजहार यतिराज विंशतिम् |
तं प्रपन्नजन चातकाम्बुदं नौमि सौम्यवरयोगिपुङ्गवम् ||
य: : जिन श्रीमद् वरवरमुनि ने
यतिपति प्रसादनीं : यतिराज श्री रामानुज मुनि को प्रसन्न करनेवाली
यतिराजविंशतिं : यतिराजविंशति नामक
स्तुतिं व्याजहार : स्तुति अनुगृहीत की
प्रपन्नजन चातकाम्बुदं : प्रपन्न जन रूप चातक के मेघ
तं सौम्यवरयोगि पुङ्गम् : उन श्रीमद् वरवर मुनि का
नौमि : स्तवन करता हूँ
यतिराज श्री रामानुज मुनि को प्रसन्न करने वाली यतिराजविंशति नामक स्तुति के रचयिता प्रपन्न जन के सभी अर्थों की वर्षा करने वाले श्रीमद्वरवरमुनि का स्तवन करता हूँ।
इस श्लोक के सम्बन्ध में ध्यान देने की बात यह है कि इसमें श्रीमद्वरवरमुनि का “ सौम्यवरयोगिपुगंव ”के नाम से स्मरण किया गया है। इस स्तुति की रचना उनहोंने गृहस्थाश्रम में ही कर ली थी किन्तु इस तनियन् श्लोक की रचना तब हुई जब उन्होंने संन्यास ग्रहण कर लिया था अतः इस श्लोक में ‘ योगिपुगंव ’ नाम से संकेत असंगत न होकर संन्यासी होने की भावी घटना का बोधक है।