॥ श्रीमते रामानुजाय नम: ॥
भगवान वैकुण्ठनाथ के साथ आदिशेष का संवाद
- वैकुण्ठ पुरी के बीच में ब्रह्मादि देवताओंसे भी अगम्य भगवान श्रीमन्नारायण का दिव्य धाम है।
- जिसके मध्यमें सहस्र फणोंवाले श्री शेषजी के ऊपर श्रीदेवी भूदेवी एवं नीलादेवी से तथा नित्य-मुक्त पार्षदोंसे सुसेवित भगवान परवासुदेव सुखपूर्वक विश्राम कर रहे हैं।
- एक समय भगवान को संसारियोंको वैकुण्ठ में लानेकी चिन्ता हुई। श्रीशेषजी चिन्ता का कारण पूछे।
- भगवान बोले की मैं जब भूमण्डल में अवतरित होता हुँ तो लोग मुझे ईश्वर नही मानतें।
- भगवान आगे बोले की आपको छोडकर संसारियों की रक्षा करनेमें दूसरा कोई समर्थ नहीं। अत: आप पृथ्वीपर अवतीर्ण होकर संसारियोंको सन्मार्गमें लगानेका काम करें।
- श्री शेषजी बोले, “श्रीमान् यदि मुझे अपनी उभयविभूतियों (लीलाविभूति और नित्यविभूति) का अधिकार दें तो मैं इन संसारी जीवोंको किसी ना किसी तरह वैकुण्ठ अवश्य पहुँचाऊँगा।
- भगवान ने श्री शेषजी को उभयविभूतियों का अधिकार सौंपा।
- भगवान की आज्ञा पाकर श्री शेषजीने पृथ्वी पर अवतार लेनेका संकल्प किया।
Posted by: राजेन्द्र रामानुजदास