प्रपन्नामृत – प्रथम अध्याय

॥ श्रीमते रामानुजाय नम: ॥

भगवान वैकुण्ठनाथ के साथ आदिशेष का संवाद

  • वैकुण्ठ पुरी के बीच में ब्रह्मादि देवताओंसे भी अगम्य भगवान श्रीमन्नारायण का दिव्य धाम है।
  • जिसके मध्यमें सहस्र फणोंवाले श्री शेषजी के ऊपर श्रीदेवी भूदेवी एवं नीलादेवी से तथा नित्य-मुक्त पार्षदोंसे सुसेवित भगवान परवासुदेव सुखपूर्वक विश्राम कर रहे हैं।
  • एक समय भगवान को संसारियोंको वैकुण्ठ में लानेकी चिन्ता हुई। श्रीशेषजी चिन्ता का कारण पूछे।
  • भगवान बोले की मैं जब भूमण्डल में अवतरित होता हुँ तो लोग मुझे ईश्वर नही मानतें।
  • भगवान आगे बोले की आपको छोडकर संसारियों की रक्षा करनेमें दूसरा कोई समर्थ नहीं। अत: आप पृथ्वीपर अवतीर्ण होकर संसारियोंको सन्मार्गमें लगानेका काम करें।
  • श्री शेषजी बोले, “श्रीमान् यदि मुझे अपनी उभयविभूतियों (लीलाविभूति और नित्यविभूति) का अधिकार दें तो मैं इन संसारी जीवोंको किसी ना किसी तरह वैकुण्ठ अवश्य पहुँचाऊँगा।
  • भगवान ने श्री शेषजी को उभयविभूतियों का अधिकार सौंपा।
  • भगवान की आज्ञा पाकर श्री शेषजीने पृथ्वी पर अवतार लेनेका संकल्प किया।

Posted by: राजेन्द्र रामानुजदास

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