प्रपन्नामृत -अध्याय 15
♦श्री यादवप्रकाशाचार्य की शरणागति♦
🔹श्री कुरेश स्वामीजी से पराजित होकर यादवप्रकाश अपने मठमें आये।
🔹रात को स्वप्नमें देवराज भगवान ने यादवप्रकाश से कहा, “तुम्हारी माता की वाणी सत्य है, यतिराज की शरणागति के बिना तुम्हारी मुक्ति न होगी।”
🔹अभी भी संशयग्रस्त यादवप्रकाश कुछ निर्णय नही कर पाये तो माताजी ने उन्हें यतिराज के शिष्य बननेकी आज्ञा दी।
🔹फिर यादवप्रकाश काञ्चीपूर्ण स्वामीजी से प्रार्थना किये की वें वरदराज भगवान की आज्ञा क्या है यह पूछकर बतायें।
🔹वरदराज भगवानने फिरसे माताजी के आज्ञा की ही पुष्टी की “मानवत्व दुर्लभ है उसमेंभी ब्राह्मणत्व दुर्लभ है। तो उसे सफल बनानेके लिये रामानुजाचार्य की शरणमें जाना चाहिये।”
🔹भगवान देवराज की आज्ञा सुनकर यादवप्रकाश रामानुजाचार्य की शरणागति किये।
🔹रामानुजाचार्य नें उनका पंचसंस्कार करके “गोविन्ददास श्रीवैष्णव” नाम रखके सन्यासमें प्रविष्ट कराया।
🔹रामानुजाचार्य की कृपा, शिक्षा एवं आज्ञा से यादवप्रकाशाचार्य ने “यतीन्द्र धर्म समुच्चर्य” नामक ग्रंथ लिखा।
🔹फिर कुछ कालतक रामानुजाचार्य की सेवामें रहकर वैकुण्ठ के लिये प्रस्थान किये।