प्रपन्नामृत – अध्याय 16
यतिराज का श्रीरंगम् प्रयाण
🔸यतिराज रामानुजाचार्य काञ्चीपुरी के भक्तोंके दोषोंको दूर करके उनके बीच वैकुण्ठनाथ भगवान की तरह सुशोभित हुये।
🔸यतिराज के मामा श्रीशैलपुर्णाचार्य स्वामीजी रंगनाथ भगवान से प्रार्थना किये की वें रामानुजाचार्य को श्रीरंगम्
बुला लें।
🔸रंगनाथ भगवान ने वरदराज भगवान की सेवामें पत्र भेजकर रामानुजाचार्य को भेजनेके लिये निवेदन किया।
🔸”यतीन्द्र रामानुजाचार्य मेरे प्राण हैं और प्राणोंका दान अशक्य होता है” यह कहकर वरदराज भगवान ने रंगनाथ भगवान की प्रार्थना अस्वीकार करदी।
🔸रंगनाथ भगवाननें देवनाट्य विशारद तथा यामुनाचार्यजी के पुत्र वररंगाचार्य को रामानुज को लेकर आनेकी आज्ञा की।
🔸वररंगाचार्य के नृत्य गीत नाट्य तथा मोहक वेष से प्रसन्न होकर वरदराज भगवान उन्हें अमूल्य वस्त्राभूषण प्रदान किये।
🔸वररंगाचार्यनें इन वस्तुओंको स्वीकार नही किया तथा मनोवांछित वस्तु देनेके लिये कहा।
🔸वरदराज भगवानने “मुझे और लक्ष्मी को छोडकर कुछ भी माँगेंगे तो मै दूँगा” ऐसा वचन दिया।
🔸वररंगाचार्य ने “रंगनाथ भगवानके लिये रामानुजाचार्य को दे दें” यह प्रार्थना की।
🔸अपने वचन के अनुसार वरदराज भगवाननें इच्छा नही होते हुये अपने प्राणस्वरूप रामानुजाचार्य को उन्हे दे दिया।
🔸आज्ञा का पालन करते हुये रामानुजाचार्य श्रीरंगम् के लिये प्रयाण किये। साथमें दाशरथि तथा कुरेश भी चल पड़ें।
🔸आखोंमें आँसू और हृदयमें संवेदना लिये पितृगृह को छोड़कर पतिगृह में जाती हुयी नववधु की भाँति रामानुजाचार्य श्रीरंगम् की ओर प्रस्थान कियें।