प्रपन्नामृत – अध्याय १७

प्रपन्नामृत –  अध्याय 17

🍀भगवान श्री रंगनाथ द्वारा यतिराज को विभूतिद्वय प्रदान🍀

🔹यतिराज श्रीरंगम पहुंचे तो श्री रंगनाथ भगवानने विविध वाद्यघोषों के तथा वेदपाठी ब्राह्मणों के साथ उनका सम्मान करनेका आदेश श्री महापुर्णाचार्य को किये।

🔹श्री रंगनाथ भगवान भी स्वागत के लिये आगे आये।

🔹भगवान बोले, “नित्य विभूति और लीला विभूति दोनोंकी अबतक मैंने रक्षा की अब आप रक्षा करें, मैं विश्राम करना चाहता हुँ।

🔹ऐसा कहकर उनको “उभयविभूतिनायक” नाम प्रदान किया।

🔹तदनन्तर रामानुजाचार्य जीवोंका उद्धार करते कालक्षेप करते हुए श्रीरंगम् मे ही रहने लगे।
[14/02 6:36 am] Rajendraji LADDA: प्रपन्नामृत – अष्टदश अध्याय

🔷श्री शैलपूर्णाचार्य स्वामी का गोविन्दाचार्यजी को श्रीवैष्णव बनाना🔷

🔺रामानुजाचार्य के मौसेरे भाई गोविन्दाचार्य माया से प्रभावित होकर कालहस्तिमें शिव आराधना करने लगे थे।

🔺उनके उज्जीवनार्थ रामानुजाचार्य श्रीशैलपुर्णाचार्य को पत्र लिखे।

🔺श्रीशैलपुर्णाचार्य कुछ शिष्योके साथ कालहस्तिपुर के लिये प्रस्थान किये।

🔺जिस जलाशयमें गोविन्दाचार्य प्रतिदिन शिव आराधना के लिये जल लेने आते थे उस जलाशय के किनारे श्री शैलपूर्णाचार्य स्वामीजी कालक्षेप करने लगे।

🔺तत्पश्चात् श्रीशैलपूर्णाचार्य ने आलवन्दार स्तोत्र का एक श्लोक लिखकर गोविन्दाचार्य के मार्गमें डाल दिये।

🔺”स्वाभाविकानवधिकातिशयेशितृत्वं
नारायण: त्वयिन मृष्यति वैदिक क:
ब्रह्मा शिव: शतमख: परमस्वराड़ि
त्येतेSपियस्य महिमार्णव विप्रुषस्ते”
यह श्लोक से गोविन्दाचार्य अत्यन्त प्रभावित हुये तथा उनमें जिज्ञासा जागृत हुयी।

🔺फिर  गोविन्दाचार्य और श्रीशैलपुर्ण का संवाद हुवा।

🔺श्री यामुनाचार्यजी के सूक्तिसे और श्री शैलपूर्णाचार्य स्वामीजी के युक्तियोंसे प्रभावित गोविन्द कुछ उत्तर नही दे सकें।

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