प्रपन्नामृत -अध्याय 21
🔸शारदा शोक नाशक श्रीरामानुजाचार्य का गोष्ठीपुर्ण स्वामीजी से मन्त्रार्थ प्राप्त करना🔸
🔺रामानुजाचार्य अपने दो शिष्य कुरेश और दाशरथि के साथ गोष्ठीपुर्ण स्वामीजी से मन्त्रार्थ प्राप्त करने आये।
🔺गोष्ठीपुर्ण स्वामीजी ने कहा, “मैंने आपको अकेले आने के लिये कहा था”।
🔺रामानुजाचार्य बोले, “दाशरथि मेरे त्रिदण्ड तथा कुरेश मेरे यज्ञोपवीत के प्रतीक हैं जो मुझसे अलग नहीं हैं।”
🔺फिरभी गोष्ठीपुर्ण स्वामीजी के आग्रहसे रामानुजाचार्य कुरेश-दाशरथि को बिना लिये एकान्तमें मन्त्रार्थ प्राप्त करनेके लिये गये।
🔺गोष्ठीपुर्ण स्वामीजी ने एकान्तमें मूलमन्त्र का अर्थ तथा महिमा का वर्णन किया।
🔺रामानुजाचार्य ने अनेक दिशाओंसे पधारे हुये वैष्णवोंको इस मन्त्र का उपदेश गोपुर पर चढ़कर जोर-जोर से किया।
🔺गोष्ठीपुर्ण स्वामीजी इस बातपर क्रोधित होनेपर रामानुजाचार्य ने बताया, “गुरुद्रोह से नरक होता है। परंतु मेरे एक के नरक जाने से अगर अनेक श्रीवैष्णवोंका उद्धार होता है तो मैं अपना सौभाग्य मानुँगा।”
🔺रामानुजाचार्य की उदारता देखकर गोष्ठीपुर्ण स्वामीजी ने उन्हे “मन्नाथ” (मेरे स्वामी) कहकर हृदय से लगाया।
🔺गोष्ठीपुर्ण स्वामीजीनें अपने पुत्र सौम्यनारायण को रामानुजाचार्य से समाश्रित करवाया।
🔺रामानुजाचार्य अपने सभी शिष्योंके साथ श्रीरंगम् आगये।