प्रपन्नामृत – अध्याय २२
यतीन्द्र श्रीरामानुजाचार्य द्वारा श्रीकुरेश तथा श्रीदाशरथि स्वामी को चरम श्लोकोपदेश
🔷श्री कुरेश स्वामीजीके प्रार्थना करनेपर श्रीरामानुजाचार्य ने उन्हे एक मास का उपवास करवाकर फिर चरम श्लोकार्थ प्रदान किया।
🔷श्री दाशरथि स्वामीजीनें भी चरम श्लोकार्थ के लिये प्रार्थना की।
🔷रामानुजाचार्य नें उन्हे गोष्ठीपुर्ण स्वामीजी के पास जानेके लिये कहा।
🔷श्री दाशरथि स्वामीजी गोष्ठीपुर्ण स्वामीजी के यहाँ ६ मास निरन्तर सेवा कैंकर्य किये।
🔷प्रसन्न होकर गोष्ठीपुर्ण स्वामीजी के पुछनेपर दाशरथि स्वामीजीने चरम श्लोकार्थ के लिये प्रार्थना की।
🔷गोष्ठीपुर्ण स्वामीजीनें उन्हे कहा, “जिनमें विद्यामद, धनमद, कुलीनता का मद यह तीनों मद नहीं हैं उन रामानुजाचार्य के पास ही आप जाकर चरमश्लोकार्थ प्राप्त करिये”
🔷दाशरथि स्वामीजी फिरसे रामानुजाचार्य के पास आगये।
🔷रामानुजाचार्य नें उन्हे आदेश दिया, “श्री महापुर्ण स्वामीजी की पुत्री अतुलायी के ससुरालमें आप सभी प्रकार के कैंकर्य बिना संकोच करो।”
🔷श्री दाशरथि स्वामीजी अभिमान रहित होकर वहाँ जाकर सभी प्रकारके छोटे-से-छोटे कैंकर्य को करने लगे।
🔷कुछ समय पश्चात् किसी विद्वान के साथ शास्त्रार्थ करते समय यह बात सबको ज्ञात होगयी की, “दाशरथि स्वामीजी कोई सामान्य नौकर नही हैं और रामानुजाचार्य की आज्ञा से यहाँ कैंकर्य कर रहे हैं”
🔷अतुलायी के ससुराल वालोंने क्षमा प्रार्थना की और दाशरथि स्वामीजी को श्रीरामानुजाचार्य के पास सविधी आदरपुर्वक भेज दिया।
🔷अब श्रीरामानुजाचार्य ने प्रसन्न होकर दाशरथि स्वामीजी को चरमश्लोकार्थ प्रदान किया।
🔷श्रीवैष्णवोंके घरमें दास्यकर्म करने के कारण रामानुजाचार्य ने दाशरथि स्वामीजी का “श्रीवैष्णवदास” नामकरण किया।
🔷तदनन्तर श्रीरामानुजाचार्य यामुनाचार्यजी के पुत्र वररंगाचार्यजी के घर जाकर संपूर्ण द्रविडवेद की अध्ययन किये।