प्रपन्नामृत – अध्याय २३

प्रपन्नामृत – अध्याय २३

🍀परमपुरुषार्थ के साधनभूत रहस्य🍀

🔸गोष्ठीपुर्ण स्वामीजी के आदेश से रामानुजाचार्य श्री मालाधर स्वामीजी से सहस्रगीति का व्याख्यान नित्यप्रति सुनने लगे।

🔸एकबार रामानुजाचार्य ने एक गाथा के अर्थ पर आपत्ति दर्शायी।

🔸मालाधर स्वामीजी ने तभीसे सहस्रगीति का कालक्षेप बंद कर दिया।

🔸गोष्ठीपुर्ण स्वामीजी ने मालाधर स्वामीजी से कहा “रामानुजाचार्य श्री यामुनाचार्यजी के अभिप्राय को यथार्थ जानते हैं। रामानुजाचार्य सामान्य मनुष्य नहीं हैं।”

🔸गोष्ठीपुर्ण स्वामीजी के आदेश से मालाधर स्वामीजी फिरसे कालक्षेप प्रारम्भ कर दिये।

🔸फिरसे एक सुक्ति के अर्थ में रामानुजाचार्य ने आपत्ति दर्शायी।

🔸मालाधर स्वामीजी ने आश्चर्यपुर्वक पुछा, “आपने तो यामुनाचार्यजी को देखा तक नही, फिर आप उनके अभिप्राय को कैसे जानते हों?

🔸रामानुजाचार्य बोले की “जैसे एकलव्य द्रोणाचार्य के अव्यवहित शिष्य थे  वैसेही मैं यामुनाचार्यजी का अव्यवहित शिष्य हुँ।”

🔸मालाधर स्वामीजी प्रसन्न होकर रामानुजाचार्य को सहस्रगीति का रहस्य अर्थ सुनाया तथा अपने पुत्र सुन्दरबाहु को रामानुजाचार्य का शिष्य बनवाया।

🔸तत्पश्चात् मालाधर स्वामीजी की आज्ञा से रामानुजाचार्य और भी विशेष अर्थोंको सुनने के लिये वररंगाचार्य स्वामीजी के पास आये।

🔸रामानुजाचार्य वररंगाचार्य स्वामीजी की प्रतिदिन दुग्धसेवा तथा हल्दीतेल लेपन की सेवा ६ महिनोंतक किये।

🔸प्रसन्न होकर वररंगाचार्य ने रामानुजाचार्य को अन्तिम पुरुषार्थ का रहस्य बताया जो शठकोप स्वामीजी व्यतिरिक्त कोई नही जानता था।

🙏“ब्रह्मविद्या का उपदेश देनेवाले आचार्य से बढकर कोई भी शिष्य के लिये श्रेष्ठ और महान नहीं है। सद्गुरु ही सच्छिष्य के लिए प्राप्य हैं क्योंकी मोक्षप्राप्ति के साधनभूत ब्रह्मविद्या का उपदेशक होने से वे मोक्ष के साधन रूप हैं। किं बहुना? आचार्य स्वयं ही भगवान के स्वरूप हैं।”🙏

🔸वररंगाचार्यजी ने अपने पुत्र श्रीशोट्ठनम्व्यजी को रामानुजाचार्य से समाश्रित करवाया।

🔸इस तरह यामुनाचार्यजी के पाच शिष्योंको आचार्य बनाकर उनसे सभी शास्त्रोंका रामानुजाचार्यजी ने अध्ययन किया।

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