प्रपन्नामृत – अध्याय २५

प्रपन्नामृत – अध्याय २५

🌸शारदाशोकनाशक श्रीरामानुजाचार्य का यज्ञमूर्ति को पराजित करना🌸

🔺यज्ञमूर्ति नामक मायावादी सन्यासी रामानुजाचार्य को वादविवादमें पराजित करने के लिये आये।

🔺साथमें बहोतसारे ग्रंथ गाडीपर लादकर ले आये।

🔺वादविवाद १८ दिन तक चला।

🔺यज्ञमूर्ति की कुयुक्तियोंके कारण श्रीवैष्णव दर्शन पराजित होजायेगा ऐसा प्रतीत हो रहा था।

🔺रामानुजाचार्य ने वरदराज भगवान को सम्प्रदाय के रक्षण के लिये प्रार्थना की।

🔺वरदराज भगवान ने स्वप्नमें रामानुजाचार्य को आदेश दिया की वें यामुनाचार्य रचित मायावाद खण्डन ग्रंथ को देखें।

🔺अगले दिन जब रामानुजाचार्य वादविवाद के लिये पधारें तो यज्ञमूर्ति को वें साक्षात् विष्णु भगवान जैसे प्रतीत हुये।

🔺भगवान वरदराज और यामुनाचार्यजी की कृपा से रामानुजाचार्य नें यज्ञमूर्ति के मायावाद का खण्डन किया।

🔺यज्ञमूर्तिनें अपना एकदण्ड दूर फेंककर रामानुजाचार्य को साष्टांग प्रणिपात किया।

🔺रामानुजाचार्य नें यज्ञमूर्ति का पंचसंस्कार करके उन्हे त्रिदण्ड प्रदान किया और उनको देवराज, देवमन्नाथ, एवं देवराजमुनि यह तीन वैष्णवनाम प्रदान किये।

🔺रामानुजाचार्य नें देवराजमुनि को चार हजार प्रबन्धोंका अध्ययन कराया।

Leave a Comment