प्रपन्नामृत – अध्याय २८

प्रपन्नामृत – अध्याय २८

🍁भगवत् प्रसाद को ग्रहण करके वैश्य की बुद्धि विमल हो गयी🍁

🔹दरिद्र ब्राह्मण वरदाचार्य जब बाहर से आये और तृप्त गुरुको देखा तो पत्निपर बडे प्रसन्न हुये।

🔹तदनन्तर ब्राह्मणपत्नि ने स्वयं जाकर उस महाजन को भगवत् प्रसाद दिया।

🔹परन्तु भगवत् प्रसाद पाकर उसकी बुद्धि विमल हो गयी।

🔹उसके हृदयमें ज्ञान उत्पन्न हुवा और चिल्लाकर बोला “माता मैं अज्ञान के कारण आपसे अनुचित व्यवहार करना चाहता था। मुझे क्षमा करें और श्रीरामानुजाचार्य से मेरे अपराधोंके लिये क्षमा प्रार्थना करें”

🔹पत्नि से सारा वृत्तांत सुनकर वरदाचार्य नें उस वैश्य को रामानुजाचार्य का शिष्य बनवा दिया।

🔹वह धनवान वैश्य आचार्य अनुग्रह से महान भक्त बन गया और विपुल धनधान्य प्रदान करके आचार्य की सेवा की।

Leave a Comment