प्रपन्नामृत – अध्याय २९

प्रपन्नामृत – अध्याय २९

🌹श्रीरामानुजाचार्य की वेंकटाचल यात्रा🌹

🔸उधर आचार्य नहीं आयेंगे यह सुनकर रामानुजाचार्य का धनी शिष्य दु:खी हुवा और रामानुजाचार्य के सन्निकट जाकर चरणोंमें गिरकर रोने लगा।

🔸रामानुजाचार्य बोले,

✅पंचसंस्कार, भगवान की सेवा, अर्थपंचक विज्ञान गुरुकृपा से ही प्राप्त होता है, परंतु आत्मोज्जीवन के लिये श्रीवैष्णव अतिथियोंका पूजन आवश्यक है।

✅थके माँदे वैष्णवोंको देखकर जिसने हर्षपुर्वक उनको पंखा नही झला, रास्ते के श्रम को दूर करनेके लिये उनकी पाद्य अर्घ्य आदि से पूजा नही की, सुन्दर मनोहर वाक्योंसे उनको संतुष्ट नही किया, मनोहर पवित्र आसन पर बैठाकर उनको भोजन नही कराया, पुष्प चन्दन आदि से यथाशक्ति उनको संतुष्ट नही किया, भोजन करानेके बाद स्वयं उनका प्रसाद ग्रहण नही किया, तो उसको वैष्णव कभी नही समझना चाहिये।

✅यज्ञेश, तुममें यह सभी गुण नहीं हैं इसलिये तुम्हारे यहाँ हम नही आते हैं।

✅तुम तो दम्भ के लिये धर्म करते हो। हम वैष्णव लोग तो सात्विक अन्न को ही भगवान को भोग लगाकर ग्रहण करते हैं।

🔸यज्ञेश ने क्षमा प्रार्थना की

🔸रामानुजाचार्य ने यज्ञेश को आगे से श्रीवैष्णव अतिथीयोंका सत्कार करने का आदेश दिया। और वेंकटाद्रि के लिये प्रस्थान किया।

🔸वेंकटाद्रि के नीचे दक्षिण की तरफ कपिल नामक तीर्थमें शठकोपादि दस सुरीयोंने निवास किया था उस तीर्थमें रामानुजाचार्य ने स्नान किया।

🔸उस देश का राजा विठ्ठलदेव रामानुजाचार्य का शिष्य बनकर नीलमण्डीय नामक क्षेत्र रामानुजाचार्य को प्रदान किया।

🔸रामानुजाचार्य वह क्षेत्र स्वाश्रित ३० ब्राह्मणोंको देदिया।

🔸तदनन्तर रामानुजाचार्य वेंकटेश भगवान का दर्शन करने आगे निकले।

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