प्रपन्नामृत – अध्याय ३१
श्री गोविन्दाचार्य का सन्यास ग्रहण
🔸गुरुदेव की सेवा ही भगवत सेवा तुल्य माननेवाले श्री गोविन्दाचार्यजी श्रीशैलपुर्णाचार्य स्वामीजी का स्मरण करके उनके समान ही श्री रामानुजाचार्यमें श्रद्धा रखते हुये अनन्य भावसे उनकी अहर्निश सेवा करने लगे।
🔸एकबार गोविन्दाचार्य की माँ आकर उनसे कहने लगी की अब तुम्हारी पत्नी ॠतुमति हुयी है अत: तुम घर चलो।
🔸यतिराज की सेवामें संलग्न गोविन्दाचार्य नही माने तो उनकी माँ ने यह बात रामानुजाचार्य से बताई।
🔸रामानुजाचार्य ने उन्हे आश्रम धर्म का पालन आवश्यक बताते हुये पत्नी के साथ अंध:कारमें एकान्तवास करनेकी आज्ञा प्रदान की।
🔸गुरु आज्ञा पाकर घर तो आगये किन्तु पत्नी के साथ रात्रिभर ज्ञान वैराज्ञ का बातें करते रहें।
🔸रामानुजाचार्य नें कारण पूछा तो गोविन्दाचार्य बोले की अन्तर्यामी भगवान के प्रकाश से रात्रिभर अन्ध:कार का नामोनिशान नही रहा।
🔸रामानुजाचार्य बोले की आश्रमधर्म का पालन करना चाहिये। गृहस्थ धर्मोपयोगी भोग्य वस्तुओंमें भोग्यता बुद्धि न करके कैंकर्य बुद्धि करनी चाहिये। अनाश्रमी पतित होजाता है।
🔸यदि गृहस्थ आश्रम धर्ममें विरक्ति होगयी है तो आपको शीघ्रही सन्यास लेना चाहिये।
🔸 गोविन्दाचार्य के सन्यास के लिये प्रार्थना करनेपर उनकी सन्यासाश्रममें निष्ठा देखकर रामानुजाचार्य ने उन्हे सन्यासाश्रममें दीक्षित किया।
🔸उनको “मन्नाथ” नामसे विभूषित किया।
🔸मन्नाथ यह रामानुजाचार्य का नाम होनेसे गोविन्दाचार्य ने इस नाम को स्वीकार नही किया।
🔸फिर रामानुजाचार्य ने मन्नाथ का ही पर्याय “एम्बार” यह नाम गोविन्दाचार्य को प्रदान किया।