प्रपन्नामृत – अध्याय ३२
श्रीभाष्य का निर्माण
🔸एक दिन रामानुजाचार्य को श्री यामुनाचार्यजी के वैकुंठगमन के समय अंगुली मोचन के लिये की गयी “श्रीभाष्य” के रचना की प्रतिज्ञा का स्मरण हुवा।
🔸इसके लिये आवश्यक “बोधायन वृत्ति” ग्रंथ प्राप्त करनेके लिये श्रीकुरेश को साथ लेकर काश्मीर के शारदापीठ आये।
🔸 सरस्वतीजी ने उन्हे यह ग्रंथ दिया और वहाँसे चले जाने को कहा।
🔸पुस्तकालय में ग्रंथ ना देखकर वहाँके विद्वानोंको रामानुजाचार्य पर संदेह हुवा।
🔸उन्होने एक मास तक पीछा करके रामानुजाचार्य को ढूँढा और उनसे ग्रंथ लेलिया।
🔸रामानुजाचार्य को बडा दु:ख हुवा।
🔸परंतु श्री कुरेश स्वामीजी ने एक मासमें यह ग्रंथ का मनन करके समस्त विषय हृदयंगम करलिया था।
🔸अद्वैतवाद तथा वेदांतोत्पन्न ज्ञान को ही साधन मानने वालोंका खंडन करनेके लिये रामानुजाचार्य ने श्री कुरेश स्वामीजी की सहायता से श्रीभाष्य का प्रणयन किया।
🔸तदनन्तर वेदान्त दीप, वेदान्त सार, गीता भाष्य आदि ग्रंथों का रामानुजाचार्य ने प्रणयन किया।