प्रपन्नामृत – अध्याय ३३

प्रपन्नामृत – अध्याय ३३

🍁श्रीकुरंग नगरी पूर्ण को मन्त्र रत्न का उपदेश🍁

🔹अन्यमतोंका खण्डन करनेके पश्चात् विशिष्ठाद्वैत सिद्धान्त का सभी दिशाओंमे प्रचार करने हेतु रामानुजाचार्य कुम्भकोणम् पधारे।

🔹वहाँ अनेक विरोधी मतवादियोंको परास्त करके अपना शिष्य बनाया और कुरुकापुरी में आकर श्री शठकोप स्वामीजी का मंगलाशासन किये।

🔹शठकोप स्वामीजी से आज्ञा लेकर रामानुजाचार्य कुरंग नगरी आकर नम्बिनारायण भगवान का दर्शन किये।

🔹भागवतोंसे रामानुजाचार्य की प्रशंसा सुनकर भगवान नम्बिनारायण रामानुजाचार्य को बोले –

🔹“हे यतीन्द्र! जब जब मैं अवतार लेता हुँ तब लोग मुझे मनुष्य समझते हैं और मेरा उपदेश नही मानते है, आप किस तरह सब लोगोंको श्रीवैष्णव बनाते हैं?”

🔹रामानुजाचार्य को मखमली आसन प्रदान कर भगवान स्वयं एक शिष्य की तरह रामानुजाचार्य के सामने विनम्रता पुर्वक खड़े होगये।

🔹प्रश्न का उत्तर देते हुये रामानुजाचार्य ने भगवान को मन्त्ररत्न का उपदेश दिया और भगवान का दास नाम “श्रीवैष्णव नम्बि” रखें।

🔹भगवान ने रामानुजाचार्य को ब्रह्मरथ प्रदान किया।

🔹इसके बाद रामानुजाचार्य शिष्यवर्ग के साथ केरल की ओर प्रस्थान किये।

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