प्रपन्नामृत – अध्याय ३४
सरस्वती से “श्रीभाष्यकार” पद की प्राप्ति
- केरलमें सभी जगह परमतावलम्बी पण्डितोंको शास्त्रार्थमें पराजित करते हुये जगह-जगह पर भगवान विष्णु के मन्दिरोंकी तथा रामानुज मठ की स्थापना कराये।
- यहाँसे उत्तर की ओर द्वारका, मथुरा, अयोध्या, श्री शालिग्राम क्षेत्र (मुक्ति नारायण), बदरिकाश्रम, नैमिषारण्य, पुष्कर, वृन्दावन आदि अनेक तीर्थोंकी यात्रा करत हुये स्वामीजी शारदापीठ काश्मीर पधारे।
- सरस्वती देवी स्वामीजी का आगमन सुनकर स्वयमेव स्वामीजी के सम्मुख उपस्थित हुयीं।
- सरस्वती देवी के विनंती से रामानुजाचार्य ने “कप्यास” श्रुति का सैद्धान्तिक अर्थ सुनाया।
- यह सुनकर अति प्रसन्न होकर रामानुजाचार्य द्वारा विरचित विस्तृत श्रीभाष्य को मस्तक पर रखकर शारदादेवी ने यतिराज को कहा, “आपके द्वारा कथित श्रुति का यह अर्थ वास्तविक एवं यथार्थ है।”
- शारदा देवी ने प्रसन्नता पूर्वक आपको “भाष्यकार” पदवी से विभूषित किया और श्री हयग्रीव भगवान के विग्रह प्रदान किये।
- इस प्रदेश का राजा भी यतिराज का शिष्य बन गया।
- यहाँसे प्रस्थान करते समय सेनासहित दो योजन चलकर राजा ने और यहाँके शिष्योंने यतिराज को सम्मानित किया।
- फिर रामानुजाचार्य गंगा नदी के तटपर आगये।