प्रपन्नामृत – अध्याय ३९
श्रीपराशर भट्टार्य का विवाह
भाग १/२
🔹पराशर भट्टार्य ने बालक अवस्थामें रंगनाथ भगवान के निमित्त रखे गये दूध का स्पर्श किया था।
🔹जब लोगोंनें कहा की बालक का स्पर्श किया हुवा दूध भगवान के योग्य नही है तब भगवान ने कहा, “यह बालक मेरे प्रसाद से जन्मा इसलिये मेरा पुत्र है”।
🔹यह कहकर भगवानने दूध ग्रहण किया और अपना दत्तक पुत्र मानकर पालन पोषण करने लगे।
🔹रंगनाथ भगवान की गोदादेवी प्रतिदिन इस पुत्र को दूध प्रदानकर पालन पोषण करने लगी।
🔹रंगनाथ भगवान भी अपने पुत्र के लिये प्रतिदिन अपना प्रसाद भेजने लगे।
🔹बालकपन से ही पराशर भट्टार्य परमज्ञानी तथा परम विद्वान थे।
🔹एक दिन “सर्वज्ञ भट्ट” नामक महापण्डित वहाँ आये।
🔹बालक पराशर भट्टार्य नें अपने अञ्जलीमें बालू भरकर सर्वज्ञ भट्ट से पूछा “इसमें कितने बालू के कण हैं?”
🔹इसका उत्तर नही बता पाने पर पराशर भट्टार्य ने उन्हे कहा की अपना नाम बदलकर “अल्पज्ञ भट्ट” रखलें।
🔹बाल की विलक्षण प्रतिभा देखकर पिता कुरेशाचार्य नें उनका यज्ञोपवीत संस्कार कराकर गुरुगृहमें अध्ययन के लिये भेजदिया।
प्रपन्नामृत – अध्याय ३९
श्रीपराशर भट्टार्य का विवाह
भाग २/२
🔹गुरुगृहमें भेजे हुये अपने बालक को दूसरे दिन मार्गमें खेलते देखकर पिता कुरेशाचार्य ने पराशर भट्टार्य को डाँटा।
🔹बालक पराशर बोले, “सब बालक कल का ही पाठ पढ रहे हैं, जो मुझे एकबार में ही स्मरण होगया था।”
🔹यह कहकर उन्होंने पिता को सब पाठ सुनादिया।
🔹बालक की विलक्षण प्रतिभा देखकर उन्होंने सोचा की ऐसे बालक की शिक्षा किसी विशिष्ट आचार्य की सन्निधीमें होना चाहिये।
🔹तत्पश्चात गोविन्दाचार्य और कुरेशाचार्य नें मिलकर बालक पराशर को शिक्षा देना प्रारंभ किया।
🔹पराशर की युवावस्था होनेपर यतिराज की आज्ञा से बृहद्चरण नामक ब्राह्मण के पुत्री के लिये याचना करने गये।
🔹बृहद्चरण ने स्वीकार नही किया।
🔹फिर रंगनाथ भगवान ने बृहद्चरण को स्वप्नमें आदेश दिया और विवाह सम्पन्न हुवा।
🔹तत्पश्चात एक दिन यतिराज ने सभी श्रीवैष्णवोंके सामने घोषित किया की आज से श्री दाशरथि मेरे लिये त्रिदण्ड होंगे। मैंने आजसे सभी शरीर संबंधियोंको त्याग दिया है।