प्रपन्नामृत – अध्याय ४५
चेलाञ्चलाम्बा का वृत्तान्त
भाग १/२
🔹यतिराज अपने शिष्योंको साथ चेलाञ्चलाम्बा के घर पधारें।
🔹चेलाञ्चलाम्बा ने उनका आदर सत्कार करके प्रसाद पाने का आग्रह किया।
(रामानुजाचार्य काषाय वस्त्रमें ना होनेके कारण चेलाञ्चलाम्बा उनको पहचान नही पायीं)
🔹उन श्रीवैष्णवोंका प्रसाद के लिये संकोच देखकर चेलाञ्चलाम्बा ने बताया की वें भी रामानुजाचार्य की शिष्यां हैं।
🔹ऐसा कहकर उन्होने यतिराज का कृपारुपी चरण संबंध कैसे प्राप्त हुवा इसका वृत्तान्त बताया।
वह वृत्तान्त इस प्रकार है-
बहोत वर्ष पूर्व गांवमें पडे अकाल के कारण चेलाञ्चलाम्बा अपने पतिदेव के साथ श्रीरंगम् चली आयीं।
एक बार उन्होंने देखा की यतिराज भिक्षाटन करते हैं फिरभी अनेक राजा-महाराजा, विद्वान उनका पूजन करने प्रतिदिन आते हैं।
एक बार चेलाञ्चलाम्बा यतिराज का मार्ग रोककर इस का कारण पूछा।
यतिराज ने बताया की भगवत् संबंधी सुंदर मंत्ररत्न के उपदेश के कारण वे लोग मेरा कैंकर्य करते हैं।
यह सुनकर चेलाञ्चलाम्बा ने भी मंत्रोपदेश का आग्रह किया।
तब यतिराज ने उन्हे समाश्रित करके मंत्रोपदेश दिया और वें जब श्रीरंगमसे लौट रही थीं तब उनको अपनी चरण पादुकायें प्रदान कीं।
प्रपन्नामृत – अध्याय ४५
चेलाञ्चलाम्बा का वृत्तान्त
भाग २/२
🔹यह वृत्तान्त सुनकर यतिराज अति प्रसन्न होकर चेलाञ्चलाम्बा को प्रसाद बनानेकी अनुमति दिये।
🔹उस साध्वी ने स्नान करके दूसरे स्वच्छ वस्त्र धारण किये और “रामानुजाचार्य के चरणारविन्द ही मेरे शरण्य हैं” ऐसा कहकर रसोई बनाई।
🔹फिर भगवान को भोग लगाकर गुरु परम्परा और द्वयमंत्र का अनुसंधान करती हुयी आचार्य के श्रीविग्रह का ध्यान करके आचार्य को प्रसाद अर्पण किया।
🔹फिर समस्त श्रीवैष्णवोंको साष्टांग करके उनके चरण प्रक्षालन करके फिर उन्हे प्रसाद ग्रहण करनेकी विनंती की।
🔹यतिराज सब देखकर अति प्रसन्न हुये और उनसे आचार्य चरण पादुका मंगवाईं।
🔹चरणपादुका भक्तिपुर्वक गन्ध पुष्पादि से पूजित देखकर प्रसन्न होकर यतिराज ने उस साध्वी से पुछा की “तुम्हारे आचार्य इस समुदायमें उपस्थित हैं या नही?”
🔹साध्वी ने सभी श्रीवैष्णवोंके चरणोंका दर्शन कर अन्तमें यतिराज के चरणोंके समीप आकर बोली,
🔹”यह चरणारविन्द मेरे गुरुदेव केे चरणारविन्द की तरह सुंदर और प्रकाशमान हैं परंतु त्रिदण्ड और काषाय वस्त्र ना होनेके कारण मैं निश्चित रूप से नही कह सकती हुँ।”
🔹इतना सुनतेही यतिराज बोले की, “हाँ, मैं ही रामानुजाचार्य हुँ और कुछ कारणवश मैंने श्वेतवस्त्र धारण किये हैं।
🔹तब चेलाञ्चलाम्बा आचार्य को देखकर रोने लगगई।
🔹यतिराज नें सभी शिष्योंसे आज्ञा की की यह प्रसाद विदुरजी ने भगवान को निवेदन किये हुये अन्न की तरह पवित्र तथा परिशुद्ध है और इसमें कोई दोष नहीं।
🔹सभी श्रीवैष्णवोंने प्रसाद पाया और फिर चेलाञ्चलाम्बा नें सभीके पत्तलोंसे बचे हुये अवशेष प्रसाद को अपने पति को पवाया और खुद प्रसाद पाये बिना जमिनपर सोगई।
🔹पतिके पुछनेपर साध्वी ने पति को बताया की आप श्रीवैष्णव नही हो इसलिए मेरे आचार्यने प्रसाद नही पाया और आचार्यने नही पाया इसलिये मैंने नही पाया।
🔹यह सुनकर उसके पति यतिराज से समाश्रित हुये।
🔹फिर यतिराज ने काषाय वस्त्र धारण किये और उस पुरे गांव को आश्रित बनाया।