प्रपन्नामृत – अध्याय ४८
यतिराज श्रीरामानुजाचार्य द्वारा यादवाद्रि पर श्रीसम्पत् कुमार भगवान की प्रतिष्ठा
🔹यतिराज जब सम्पतकुमार भगवान को लेकर दिल्ली से यादवाद्रि आरहे थे तब मार्गमें ही वह राजकन्या भगवान के श्रीविग्रहमें विलीन होगयी।
🔹तत्पश्चात श्रीनारायणपुर पहुँचकर यतिराज नें विधीपुर्वक सम्पतकुमार भगवान का संप्रोक्षण करके मूलमुर्ति के समीप प्रतिष्ठित कर दिया।
🔹राजकन्या की भी मुर्ति बनवाकर भगवान के चरणारविन्द में बिराजमान किया।
🔹दिल्लीश्वर ने भी यह बात सुनकर अपने जामाता सम्पतकुमार भगवान के लिये बहुत धन प्रदान किया और यादवाद्रि पर जाकर यतिराज का दर्शन किया।
🔹चारों वर्णोंसे भी अलग निम्न जाति के लोगोंने सम्पतकुमार भगवान को लानेमें साथ दिया था उन सबपर दया करके यतिराजनें यह मर्यादा निश्चित की कि सम्पतकुमार भगवान के वार्षिक उत्सवमें तीन दिनोंतक सभी जातिके लोग बलि पीठतक जाकर भगवान के दर्शन कर सकते हैं और कल्याणी तीर्थमें स्नान भी कर सकते हैं।
🔹अन्त्यज (निम्नतम) जाति के लोगोंके लिये भी मंदिरमें प्रवेश की मर्यादा यतिराजने उस समयमें स्थापित की जब की लोग इसकी कल्पना भी नही कर सकते। यह परम्परा आजतक चली आरही है।
🔹फिर यतिराज ने “यतिराज मठ” नामक मठ की स्थापना की और वहाँ निवास करते हुये भागवत धर्म का प्रचार करने लगे।
🔹तबसे यादवाद्रि यतिगिरी नाम से प्रसिद्ध हुवा।
🔹यतिराजनें कहा इस पर्वतपर निवास करनेवाले को मोक्ष का जन्मसिद्ध अधिकार है। यहाँ निवास करनेवाले दुर्जनोंका भी कल्याण निश्चित है।
🔹सम्पतकुमार भगवान को पुत्रवत् मानकर सदा उनकी मंगलकामना करते हुये यतिराज रंगनाथ भगवान के विरहजनित दु:ख को भूलगये।
🔹यतिराज के वियोगसे दु:खित होकर और कृमिकण्ठ के अत्याचारोंसे भयभीत होकर श्रीरंगम निवासी श्रीवैष्णव जन धीरे धीरे यादवाद्रि पर आकर बसने लगें।
🔹 श्रीरंगम श्रीवैष्णवोंसे रहित होने लगा यह देखकर रंगनाथ भगवान ने कृमिकण्ठ का नाश करने का निश्चय किया।