प्रपन्नामृत – अध्याय ५५

प्रपन्नामृत – अध्याय ५५

🌷श्री आन्ध्रपूर्णाचार्य स्वामी की अनन्य आचार्य निष्ठा🌷

🔹श्री आन्ध्रपूर्णाचार्य अपने आचार्य यतिराज के श्रीचरणों को ही उपाय उपेय मानकर उनकी सेवा में रहते थे।

🔹श्री आन्ध्रपूर्णाचार्य जब यतिराज के साथ रंगनाथ भगवान के दर्शन के लिये जाते तब वे रंगनाथ भगवान का दर्शन न करके यतिराज के दर्शन ही करते थे।

🔹एक बार यतिराज ने कहा, “देखो रंगनाथ भगवान के नेत्र कितने सुंदर हैं”, तो आन्ध्रपूर्णाचार्य ने कहा की, “दासके लिये आपके नेत्र ही परम प्रिय हैं”

🔹एक समय आन्ध्रपूर्णाचार्य यतिराज के लिये दूध गरम कर रहे थे तो बाहर रंगनाथ भगवान की सवारी आयी। स्वामीजी दर्शन करने के लिये नही गये। पूछनेपर उन्होने बताया की अगर दर्शन करने जाते तो दूध उफनकर गिरजाता और आचार्यसेवा बिगड़ जाति।

🔹वें आचार्य का श्रीपादतीर्थ ग्रहण किये बिना जल भी नही पिते थे।

🔹उन्होने शालग्राम क्षेत्रमें यतिराज की चरणपादुकायें स्थापित कीं ताकि लोग उन चरणपादुकाओंकी आराधना करके संसार सागर से मुक्ति पा सकें।

🔹उन्होनें अपनी अन्तिम अवस्था में अपने अन्तरंग शिष्योंको बुलाकर कहा की “आप लोग यतिराज के चरणकमलोंको ही अपना रक्षक और उपाय मानकर जीवन व्यतीत करें।

🍎फलश्रुति🍎
🔹जो मनुष्य ऐसे महान आचार्यनिष्ठ महात्मा की महिमा का मनन करते हैं, वे निश्चय ही आचार्य के परम प्रिय भक्त बन जाते हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं।

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