प्रपन्नामृत – अध्याय ५६

🌷श्री अनन्त आलवान की कैंकर्य निष्ठा🌷

🔹यतिराज के एक शिष्य श्री अनन्तालवान स्वामीजी यतिराज के आज्ञा से वेंकटाचलपर “रामानुज सरोवर” की खुदाई कर रहे थे।

🔹उनकी पत्नी टोकरीमें मिट्टी भरकर दूर डाल रही थी।

🔹एक बालक सहायता के लिये आया तो अपना कैंकर्य बिगडता देखकर स्वामीजी ने उसे चले जाने के लिये कहा।

🔹तब वह बालक स्वामीजी के पत्नी को सहायता करने लगा और टोकरी खाली करके देने लगा।

🔹कार्य शीघ्र होरहा है यह देखकर स्वामीजी को पता चला तो वें उस बालक के पीछे पडगये।

🔹बालकरुपी भगवान डरकर दौड़े और मंदिरमें आगये।

🔹एक समय स्वामीजी भगवान के लिये तुलसी उतार रहे थे तो उन्हे सर्पने डँस लिया।

🔹लोगोंने कहा की विष शमन के लिये कुछ प्रयत्न करना चाहिये तो स्वामीजी ने दृढ विश्वासपुर्वक कहा की,

▶अगर मैं सर्पसे ज्यादा बलवान हुवा तो रामानुज पुष्करिणी में स्नान कर वेंकटेश भगवान की सेवामें चला जाऊँगा और अगर सर्प ज्यादा बलवान हुवा तो में विरजा स्नान कर वैकुंठनाथ भगवान की सेवामें जाऊँगा। इसमें डरनेकी क्या बात है?◀

🔹एक बार स्वामीजी कोसलदेश की यात्रा के लिये वेंकटाचलसे निकले। साथमें भगवान का दध्योदन प्रसाद लिया।

🔹कुछ दूरी पर जाकर पानेके लिये प्रसाद निकाला तो देखा की वह पात्र चिटियोंसे भरा हुवा था।

🔹नित्य सूरियोंने प्रार्थना की थी की “किसी भी रूपमें हमें वेंचटाचलपर जन्म मिलें”।

🔹यह प्रार्थना का स्वामीजी को स्मरण हुवा तो सभी चिटियोंमे दिव्यसुरीयोंका दर्शन करते हुये चिटियोंसहित वह प्रसाद फिरसे वेंकटाचलपर लाकर छोडदिया।

🔹एकबार स्वामीजी भगवानके लिये पुष्पमाला बना रहे थे।

🔹तब भगवानने उन्हे बुलाया तो स्वामीजी नही गये।

🔹पुष्पमाला बननेके बाद जब स्वामीजी भगवान को समर्पित करने गये तो भगवान ने पुछा, “मेरे बुलानेपर क्यों नही आये?”

🔹स्वामीजी ने कहा, “मैं यहाँ मेरे स्वामीजी के आदेश से कैंकर्य कर रहा हुँ, जबतक वह पुर्ण नही होजाता तबतक मैं कहीं नही जा सकता”।

🔹भगवान बोले की, “मैं तुम्हे वेंकटाचल से निकालदूँ तो?”

🔹तो स्वामीजी बोले की आप भक्त पराधीनता के कारण वैकुण्ठलोक से आकर यहाँ बिराजे हैं और मैं रामानुजाचार्य की आज्ञा से यहाँ आया  हुँ। हम दोनों भी यहाँ पराधीन हैं तो आप मुझे कैसे निकाल सकते हैं?”

🔹स्वामीजी की दृढता, आचार्यनिष्ठा और कैंकर्यनिष्ठा को देखकर भगवान अत्यन्त हर्षित हुये।

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