प्रपन्नामृत – अध्याय ५७

🌷श्रीकुरेशाचार्य की आचार्य निष्ठा🌷

🔹एकबार श्रीकुरेशाचार्यने रंगनाथ भगवान की सन्निधी में आकर भगवान का मंगलाशासन किया।

🔹रंगनाथ भगवानने अति प्रसन्न होकर उनसे मनोवांछित वर मांगनेको कहा।

🔹श्रीकुरेशाचार्य ने कहा, “आपने मुझे पहले से ही सबकुछ दिया है, अब  कुछ भी कामना नहीं है।”

🔹भगवान ने पुन: आग्रह करनेपर श्रीकुरेशाचार्य बोले, “आप मुझे परमपद दे दीजिए।”

🔹भगवान ने कहा, “तुम्हे तो परमपद देदुँगा और तुम्हारे भक्त, उन भक्तोंके भक्त, भक्तोंकी परंपरा के अंतिम भक्त एवं तुम्हारे सभी संबंधियोंको भी परमपद प्रदान करुँगा।”

🔹यतिराज ने जब यह सुना तो अत्यन्त हर्षित होकर अपने एक काषाय वस्त्र को गेंद की भाँति उपर उछालकर नाचने लगे की, “कुरेश का मेरा भी संबंध है, अब मुझे भी परमपद मिलेगा।”

🔹यतिराजने ध्यानमग्न कुरेश स्वामीजी के पास आकर उनको द्वय मंत्र सुनाया।

🔹अत्यन्त दु:ख के साथ यतिराज ने कुरेश स्वामीजी को परमपद जानेकी आज्ञा प्रदान की।

🔹तत्पश्चात यतिराज अपने मठमें लौट आये।

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