प्रपन्नामृत – अध्याय ५९

🌷अर्चावतोरों द्वारा श्रीयतिन्द्र का वैभव प्रकाशन🌷

🔹रंगनाथ भगवान ने यतिराज को कहा, “आपसे संबंधित जितने भी श्रीवैष्णव हैं तथा भविष्यमें आपकी परंपरामें आनेवाले जो जीव होंगे उनके लिये तथा आपके लिये हमनें अपनी दोनों विभूतियाँ प्रदान कर दी है।”

🔹वेंकटेश भगवान ने भी ऐसा ही कहकर यतिराज का वैभव बढाया।

🔹एक समय वेंकटाद्रि के मार्गपर तौण्डुरु कोडी नामक एक भक्ता ग्वालिन ने यतिराज और शिष्य मण्डली को दही विक्रय किया।

🔹दही का मूल्य पुछनेपर उसने मोक्ष माँगा तो यतिराज ने वेंकटेश भगवान के लिये पत्र लिखदिया।

🔹वह पत्र लेकर वह भक्ता वेंकटेश भगवान के पास गयी तो भगवाननें यतिराज के पत्र के कारण उस कुछ नही जाननेवाली ग्वालिन को भी मोक्ष देदिया।

🔹वरदराज भगवान ने यज्ञमुर्ति के साथ १८ दिनतक चलनेवाले शास्त्रार्थ के समय यज्ञमुर्ति को पराजित करनेका उपाय यतिराज को बताया था।

🔹वरदराज भगवान ने यादवप्रकाश के स्वप्नमें आकर उन्हें यतिराज की शरण जाने की आज्ञा दी थी।

🔹यादवाद्रिनाथ भगवान ने यतिराज को स्वप्नमें दर्शन देकर यादवाद्रिमें भगवत प्रतिष्ठा करनेका आदेश दिया था।

🔹सम्पतकुमार भगवान ने यतिराज का पुत्रत्व स्वीकार किया था।

🔹सुंदरबाहु भगवान ने कहा, “रामानुजाचार्य लोकरक्षक तथा विभूतिद्वयनायक होने के कारण सर्वश्रेष्ठ हैं।”

🔹प्रणतार्तिहराचार्य स्वामीजी ने जब अपने आपको अगति मानकर सुंदरबाहु भगवान की शरणागति की तो भगवान ने कहा, “यतिराज के शिष्य होकर आप अपने आपको अगति क्यों मानते हो?”

🔹कुरंगनगरीपुर्ण भगवान ने यतिराज को कहा, “मेरे राम-कृष्ण अवतारमें भी लोगोंने मुझे भगवान नही माना पर आपने लोगोंको ऐसा कौनसा मंत्र दिया है की लोग मुझे भगवान मानने लगे हैं?”

🔹यतिराज के कहनेपर कुरंगनगरीपुर्ण भगवान ने यतिराज का शिष्यत्व स्वीकार किया फिर यतिराज ने भगवान के कानमें मंत्ररत्न (द्वय मंत्र) सुनाकर शिष्य बनाया।

🔹यतिराजने कुरंगनगरीपुर्ण भगवान का “श्रीवैष्णवपुर्णदास” नामकरण किया।

🔹इस प्रकार सभी दिव्य देशोंमें बिराजनेवाले अर्चावतारोंने यतिराज की वैभववृद्धि की।

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