प्रपन्नामृत – अध्याय ६०

 

🌷श्री रामानुजाचार्य का वैभव (१)🌷

🔹श्री विष्वक्सेनजी श्री शठकोप स्वामीजी के रूपमें भूतल का भार उतारने के लिये आये थे।

🔹परंतु संसारी जीवोंको देखकर और भगवान के विरह में भगवान का चिन्तन करते हुये एक इमलीवृक्ष के कोटरमें जीवन व्यतीत किये।

🔹जीवोंको कोई उपदेश न दे पाये तब उन्होने विचार किया की श्री आदिशेष रामानुजाचार्य ही यह कार्य कर सकते हैं।

🔹तभी उन्होेने भविष्यवाणी की, “आजसे ४००० वर्ष के बाद इस पृथ्वीपर रामानुजाचार्य अवतार लेंगे जो समस्त पापोंको नष्ट करदेंगे, जिनके कारण रौरवादि नरक स्वयमेव नष्ट होजायेंगे, और यमराज निष्कर्म होकर बैठा रहेगा।”

🔹बादमें नाथमुनि स्वामीजी ने भी रामानुजाचार्य के बारेमें भविष्यवाणी की थी।

🔹महापुर्णाचार्य स्वामीजी ने कहा, “यतिराज के सदृश्य महात्मा एवं श्रेष्ठ पुरुष अन्य कोई नही है।”

🔹महापुर्णाचार्य स्वामीजी अपने शिष्य रामानुजाचार्य में अपने आचार्य यामुनाचार्यजी का दर्शन करते थे।

🔹गोष्ठीपुर्ण स्वामीजी ने रामानुजाचार्य को परम गोपनीय मंत्र रहस्य प्रदान किया और यह मंत्र आचार्य आज्ञा का उल्लंघन करके रामानुजाचार्य ने गोपुर पर चढकर सबको सुनादिया।

🔹मंत्र श्रवणसे असंख्य जीवोंको परमपद मिलनेके लिये रामानुजाचार्य को स्वयं नरक जाना स्वीकार था यह करुणा भाव देखकर गोष्ठीपुर्ण स्वामीजी ने रामानुजाचार्य का नाम “मन्नाथ (मेरे नाथ)” रखदिया और विशिष्टाद्वैत सिद्धान्त को “रामानुज सिद्धान्त” के नाम से प्रसिद्ध किया।

🔹गोष्ठीपुर्ण स्वामीजी ने अपने पुत्र को रामानुजाचार्य से समाश्रित करवाया।

🔹श्री मालाधराचार्य स्वामीजी ने आचार्य होकर भी रामानुजाचार्य की अलौकीक प्रतिभा से प्रभावित होकर अपने पुत्र को रामानुजाचार्य से समाश्रित करवाया।

🔹इसी प्रकार उस समय जितने भी महापुरुष विद्वान थे उन सभीने श्रीरामानुजाचार्य को लोकरक्षा के लिये अवतरित जानकर उनको आचार्य मानते हुये उनके वैभव की वृद्धि की।

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