प्रपन्नामृत – अध्याय ६४

🌷जगद्गुरु श्री रामानुजाचार्य का प्रभाव 🌷

🔹एकबार धनुर्धरदास स्वामीजी बोले “बिभीषण जी स्त्री पुत्र आदि का त्याग करके श्री रामजी की शरणागति किये परंतुु मैंने तो कुछ नही त्याग किया है। मेरी गति कैसे होगी?”

🔹रामानुजाचार्य बोले, “अगर शठकोप स्वामीजी को मुक्ति मिली है, यामुनाचार्य, महापुर्णाचार्य को मुक्ति मिली है तो मुझे मुक्ति मिलेगी। और अगर मुझे मुक्ति मिलती है तो तुम्हे भी अवश्य मिलेगी।”

🔹बिभीषण के साथियों ने अलगसे शरणागति नही की। उनको बिभीषण के संबंध मात्र से मुक्ति मिली।

🔹शत्रुघ्नजी ने भरतजी की शरणागति की, मधुरकवि स्वामीजी ने शठकोप स्वामीजी की शरणागति की, गोदाम्बाजी ने विष्णुचित्त स्वामीजी की शरणागति की, सभी बडे बडे महात्माओंने अपने अपने गुरुदेव की शरणागति से मोक्ष प्राप्ति की।

🔹भगवत्प्राप्ति आचार्यादेश के पालन से ही सम्भव है।

🔹सभी दिव्य देशोंके भगवान रामानुजाचार्य के हृदयमें विद्यमान हैं।

🔹यतिराज रामानुजाचार्य जीवोंके लिये उपाय-उपेय दोनों ही हैं।

🔹रामानुजाचार्य के नामोच्चारण से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।

🔹”रामानुज” इन चार अक्षरोंके स्मरण बिना संसार बंधन छूट नही सकता।

🔹रामानुजाचार्य का पूजन ही परम पुरुषार्थ है।

🔹रामानुजाचार्य के चरणाश्रित महात्मा जहाँ निवास करते हैं वही परमपवित्र स्थान है।

🔹कोई प्रबल प्रयास करके समुद्र को तैर सकता है पर श्रीयतिराज के चरित्र का आद्योपान्त वर्णन असम्भव है।

🔹जैसे रामराज्यमें प्रजा रोगरहित, उपद्रवरहित, धर्मरत, शान्त, दीर्घजीवी हुयी उसी प्रकार रामानुजाचार्य द्वारा रक्षित मनुष्य दीर्घजीवी, महात्मा एवं श्रीवैष्णव हुये।

🔹रामानुजाचार्य की उपस्थिति में कलियुगमें धर्म चारों चरणोंसे पृथ्वीपर प्रतिष्ठित हुवा।

🔹रामानुजाचार्य की उपस्थिति में समय से वर्षा होती थी, पृथ्वी सस्य श्यामला थी, राजा धर्मपरायण थे, मनुष्य ईर्ष्या-द्वेष-आलस्य-क्रोध-भय रहित होकर धर्म में संलग्न और अत्यन्त शान्त थे और पृथ्वी वैकुण्ठ समान होगयी थी।

🔹रामानुजाचार्य के समय में चित्रगुप्त और यमराज का कार्य बन्द होगया था।

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