प्रपन्नामृत – अध्याय ६७

🌷 श्रीयतिराज का परमधाम गमन 🌷

🔹श्रीरंगम निवासी सभी श्रीवैष्णवोंके पुछनेपर यतिराज ने सबको कर्तव्य का आदेश दिया।

🙏🏼 लोकसुख प्रारब्धाधीन और मोक्षसुख भगवत्संकल्पाधीन होने के कारण दोनों के  विषय में निश्चिन्त रहना चाहिये।

🙏🏼 ऐसे प्रपञ्चोंमें पडनेसे शरणागति व्यर्थ हो जाती है।

🙏🏼 आपलोगोंको मोक्ष का उपाय मानकर कोई कर्म नही करना चाहिये अपितु भगवत् कैंकर्य मानकर शुभकर्मोंको करना चाहिये।

रामानुजाचार्य ने आगे कहा –
1. भगवान श्रीमन्नारायण के कैंकर्यभूत श्रीभाष्य का आजीवन श्रवण करना चाहिये।

2. यदि यह न हो सके तो आल्वारोंद्वारा प्रणित दिव्य प्रबंधोंका अभ्यास कर प्रतिदिन शिष्योंको उस विषय का उपदेश देना चाहिये।

3. यदि यह भी न हो सके तो निरन्तर दिव्यदेशों में भगवान श्रीमन्नारायण का कैंकर्य करें।

4.यदि यह भी नही हो सके तो यादवाद्रि में पर्णकुटी बनाकर अहंकार का त्याग करके सदैव निवास करें।

5.यदि यह भी नही होसके तो जीवनपर्यन्त आलस्य का त्याग करके अर्थसहित द्वयमन्त्र का अनुसन्धान कर ईश्वर पर निर्भर होकर निवास करें।

6.यदि यह भी नही होसके तो निरन्तर ज्ञान भक्ति आदि गुणोपेत अहंकारहीन श्रीवैष्णवोंके आदेश का पालन करते उनकी सेवामें संलग्न रहें। यही भवसागर पार होने का अन्तिम उपाय है।

🔹शिष्योंको उपरोक्त लोककल्याणकारी उपदेश देकर यतिराज श्रीरामानुजाचार्य परमधाम पधार गये।

🔹उनके उपदेशानुसार संसारमें वास करनेवाले श्रेष्ठ अधिकारियोंके लिये विरोधी, अनुकूल एवं तटस्थ ये तीन प्रकार के विषय हैं।

🔹भागवतोंमें प्रेम उत्पन्न करनेवाले विषय अनुकूल कहे जाते हैं।

🔹विरोधी विषयोंको अग्नि और सर्प को भाँति दूर से ही त्याग देना चाहिये।

🔹श्रीवैष्णवोंकी संगति से मुक्ति देनेवाला सम्यग् ज्ञान होता है।

🔹धन की इच्छा से अनुकूल विषयोंका अनादर एवं प्रतिकूल विषयोंका सेवन भगवान के लिये शोकदायी होता है।

🔹भगवान भागवतापचार से व्याकूल हो जाते हैं।

🔹अत: अर्थ की ईच्छा से भी विरोधीयोंकी सेवा न करें।

🔹विरोधियों का द्रव्य केवल विरोध के लिये होता है।

🔹किसी श्रीवैष्णव नें यदि किसी एक विरोधी से किसी भी वस्तु की याचना की तो उससे भगवान का उसी तरह अपमान होता है जैसे किसी सार्वभौम राजा की स्त्री द्वारा किसी क्षत्रिय के पास याचना करना।

🔹अत: अर्थ कामना से किसी व्यक्ति से याचना न करें।

🔹भागवतोंका अपमान करने से पूर्व-प्राप्त भक्ति भी निष्फल होकर नष्ट होजाती है।

🔹जिनमें ईर्ष्या-द्वेष-मद न हो ऐसे विलक्षण तथा श्रेष्ठ श्रीवैष्णव महात्माओं के साथ सर्वदा निवास करना चाहिये।

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