श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः
द्रमिडोपनिषद प्रभाव् सर्वस्वम्
श्री रामानुज स्वामीजी और दिव्य प्रबन्ध
श्री दिव्य प्रबन्ध साक्षात आल्वारोंद्वारा प्रदत्त ज्ञान होने के कारण हमे श्री रामानुज स्वामीजी का श्री दिव्य प्रबन्ध के साथ जो संबन्ध है उसका अवलोकन करना आवश्यक है। ज्ञान की प्रणाली के साथ किसी के भी संबन्ध को विभिन्न दृष्टिकोणोंसे देखा जा सकता है।व्यक्ति एक छात्र के रूप में इस विषय का अध्ययन करने के लिए चुन सकते हैं. कोई एक छत्र के रूप में इसका अध्ययन करना चाहते हैं तो कोई और आगे बढ़कर एक विद्वान आचार्य बन सकता है ताकि वो इतरोंकों इस ज्ञान का प्रकाश कर सके। छात्र रूप में हो अथवा आचार्य रूप में हो, यह तो प्रमाणित होही जाता है की उसका संबन्ध इस विषय है।हम प्रवचन के प्रारम्भिक स्थिति में होने के कारण तर्क वितर्क करने वालोंकी आवश्यकता पूर्ण करनेके लिए तथा उन्हे और पढ़नेके लिए प्रोत्साहित करनेके लिए हमे इतनी जानकारी पर्याप्त है।
श्री रामानुज स्वामीजी – दिव्य प्रबन्ध के छात्र श्री रामानुज स्वामीजी दिव्य प्रबन्ध के छात्र हैं इसके अनेक उदाहरण श्री गुरूपरम्परा ग्रंथोंमें प्राप्त होते हैं। श्री गुरूपरम्परा सारम् ग्रंथ के अनुसार श्री रामानुज स्वामीजी ने श्री मालाधार स्वामीजी से सहस्रगीती का अध्ययन किया। श्री रामानुज नूट्रन्दादि (प्रपन्न गायत्री) में भी कई बार श्री रामानुज स्वामीजी के दिव्य प्रबंध के अध्ययन का उल्लेख किया गया है। इतिहास में तथा विविध स्तोत्रोमें श्री रामानुज स्वामीजी दिव्य प्रबंध के विद्यार्थी होने के अनेक प्रमाण मिलते हैं। साथ में यह भी जानना जरूरी है की यह केवल ऊपरी अध्ययन अथवा व्यक्तिगत रुचि पे आधारित अध्ययन नहीं था। यह अध्ययन तो श्री नाथमुनी स्वामीजी से प्रणित आचार्य शिष्य परंपरा से दिव्य प्रबंध को जाननेकी व्यवस्था थी। यह कहना यथार्थ होगा की यह दिव्य आचार्य शिष्य परंपरा सहस्र वर्षोंसे चले आने का कारण एकमात्र श्री दिव्य प्रबंध ही हैं और श्री दिव्य प्रबंध इस परम्पराका अविभिन्न घटक है। अत: यह कहने में यत्किंचित भी कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए की श्री रामानुज स्वामीजी श्री दिव्य प्रबंध के एक समर्पित विद्यार्थी थे
एम्पेरुमानार् तिरुमलिअन्डन र्श्रपाततिले् तिरूवैमोज्हिकु अर्तम क्ए्ट्टरूलिनार
श्री रामानुज स्वामीजी – दिव्य प्रबन्ध के आचार्य
परंपरागत रूपसे श्री आलवारोंके दिव्य प्रबन्ध के पूर्व कुछ श्लोक निवेदन किए जातेए् हैं, जो श्लोक दिव्य प्रबन्ध का हिस्सा नहीं हैं। उन श्लोकोंको “तनियन” कहा जाता है।
हर दिव्य प्रबन्ध के लिए तनियन की संख्या परिवर्तनशील होती है। तनियन के कुछ उद्देश्य होते हैं, जो इस प्रकार हैं:
(I) यह दिव्य प्रबन्ध के महत्व को बताते हैं।
(II) जिन आल्वारोंने दिव्य प्रबन्ध की रचना की उनका महत्त्व बताते हैं।
(III) जिन आल्वारोंने दिव्य प्रबन्ध की रचना की उनका अवतारस्थल, अवतारदिन, या और कोई विशेषता बताते हैं।
(iv) दिव्य प्रबन्ध से जो संदेश मिलता है उसे संक्षिप्त रूप में समझाते हैं।
तनियन के उपरोक्त उद्देश्य स्पष्ट हैं। हमारे पूर्वाचार्योंकों दिव्य प्रबंधोंसे जो बोध हुआ और जो संदेश मिला वो सरल भाषा में तनियन हमे संक्षिप्त काव्य रूप में देते हैं।
परन्तु हमे ऐसे भी तनियन मिलते हैं जो उपरोक्त उद्देश्योंसे अलग हैं। यहाँ सहस्रगिती और पेरीय तिरुमोलि से कुछ तनियन प्रस्तुत कर रहे हैं।
सहस्रगिती में एक संस्कृत तथा पाँच तमिल श्लोक तनियन के रूप में हैं। उनमेसे दो तनियन हमारा ध्यान विशेष रूप से आकर्षित करते हैं। एक श्री अनन्तालवान स्वामीजी से रचित है तो दूसरी श्री पराशर भट्टर स्वामीजी से रचित है। दोनों आचार्य श्री रामानुज स्वामीजी के समकालीन शिष्य एवं परम शिष्य हैं।
एयन्दवाबरूगींरत्ति ,इरामानुशमुनि तन ,वायन्दमलर प्पादम वणड्ंगुगिन्रेन,आयन्द पेरूम् , शीरार शडगोबन शैन्दमिळ वेदम तरिक्कम् पेराद उळ्ळम् पेर ,
तनियन में निवेदन किया है की शठकोप स्वामीजी दूारा रचित दिव्य प्रबंघोको ठीक तरह से आत्मसात करने के श्री रामानुज स्वामीजी के चरणकमलोकी वंदना करता हूं
वान तिगळुम् शोलै मदिळरगॅंर वण् पुगळ्मेल् , आन्र तमिळ्मरैगळ् आयिरमुम ईन्र मुदल्दाय् शडगोबन् मोयम्बाल वळरत्त , इदत्ताय् इरामानुशन्
तनियन में निवेदन किया है की शठकोप स्वामीजी एक माॅं की तरह सहस्त्रगिती के १००० पाशुरोकों जन्म दिया सहस्त्रगिती रूपी इस बालक का पालन पोषण धात्रेय माता के रूप मे श्री रामानुज स्वामीजी ने किया
पेरीय तिरुमोलि में एक संस्कृत तनियन तथा तीन तमिल तनियन हैं। उसमेसे एक विशेष तनियन श्री गोविंदाचार्य स्वामीजी से रचित है।
एगंल गदिये इरामानुज मुनिये,शगैं केडुत्ताण्डदवराशा,पोड्ंगु पुगळ्,मगैंयरकोनीन्द मरैयायिरम आनैत्तम् तगुंमनम नीयेनक्कु त्ता
यह तनियन श्री रामानुज स्वामीजी से निवेदन करता है की मेरे मन को आशीर्वाद दीजिये की मेरा मन श्री परकाल स्वामीजी के पेरीय तिरुमोलि को धारण कर सकें।
श्री रामानुज स्वामीजी का उल्लेख ही इन सब तनियन के मुख्य भाग है। यह विचित्र है क्योंकी कोई सीधे उन प्रबन्ध करता श्री आल्वार को निवेदन कर सकता है ।अथवा वो सीधे श्रीमन्नारायण भगवान को भी निवेदन कर सकता है। अथवा वो श्री लक्ष्मी अम्माजी को भी निवेदन कर सकता है। अथवा वो लूप्त दिव्य प्रबन्ध का पता लगानेवाले श्री नाथमुनी स्वामीजी को भी निवेदन कर सकता है। परन्तु वो मुख्य रूप से श्री रामानुज स्वामीजी के तनियन ही निवेदन करना पसन्द करते हैं।
इस रहस्य का उत्तर श्री पराशर भट्टर स्वामीजी द्वारा रचित तनियन से मिलता है। यह तनियन सहस्रगिती के संदर्भ में होनेपर भी सामान्य रूप में सभी प्रबंधोंके लिए लागू है।इसका उत्तर यह है: दिव्य प्रबन्ध श्री आल्वारोंके द्वारा रचित होनेपर भी उन प्रबंधोंका पालन पोषण करके उनको सामान्य अतिसामान्य जीवोंके उपयुक्त बनानेका कार्य श्री रामानुज स्वामीजी ने ही किया। श्री रामानुज स्वामीजी का महत्वपूर्ण योगदान है की उन्होने अपने शिष्योंकी की टिप्पणियों के माध्यम से दिव्य प्रबंधोंके अर्थोंको सुरक्षित बनानेकी व्यवस्था की। श्री रामानुज स्वामीजी के विषय में एतिह्य तथा निर्वाह दिव्य प्रबंधोंके टिप्पणियोंमें उपलब्ध हैं।
यह सब ध्यान रखते हुये श्री वरवरमुनी स्वामीजीने आर्ति प्रबन्धं में द्रविड़ वेदोंका पालन पोषण करने वाले श्री रामानुज स्वामीजी का मंगलशासन किया है।मारन् उरै सैइद ठमिल् मरै वलर्तोन् वा्ज्हिडये
इस तरह श्री रामानुज स्वामीजी का दिव्य प्रबन्ध के आचार्य के रूप में जाना जा सकता है।
श्रीरामानुज स्वामीजी का संचलन
श्री रामानुज स्वामीजी उनके समय में अपने संचलनसे कैसे प्रसिद्ध हुये?
क्या वे एक महा विद्वान के रूप में जाने जाते थे या एक निपुण वेदांति के रूप में जाने जाते थे?
श्री रामानुज स्वामीजी के आचरण के प्रत्यक्ष साक्षी श्री तिरुवरंगथ्थु अमूधनार स्वामीजी थे। वो कहते है:
उऱू पेरूञ्जेल्वमुम् तन्दैयुम तायुम, उयर कुरूवुम् वेरि तरू पूमगळ् नादनुम, मारन विळडि्गय श नेरि तुरूम शन्दमिळ् आरणमे एन्रिन नीळ् निलत्तोर ,अरिदर निन्र इरामानुशन एनक्कारमुदे
श्री रामानुज स्वामीजी ने अपने आप को ऐसा संचालित किया की समस्त विश्व यह जान जाये की श्री शठकोप स्वामीजी द्वारा रचित द्रविड़ वेद उनके माता हैं, पिता हैं, धन है, गुरू हैं, और भगवान भी हैं।
श्री रामानुज स्वामीजी का द्रविड़ वेदोंके प्रति समर्पण इससे श्रेष्ठतर रूप से नहीं कहा जा सकता।
आधार – https://granthams.koyil.org/2018/01/30/dramidopanishat-prabhava-sarvasvam-1-english/
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