श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः
द्रमिडोपनिषद प्रभाव् सर्वस्वम्
श्री पेरुमाळ कोईल महामहोपाध्याय जदगाचार्य सिंहासनाधिपति उभय वेदान्ताचर्य प्रतिवादि भयंकर श्री अणंगराचार्य स्वामीजी के कार्य पर आधारितII
(i) पुण्डरीकाक्ष भगवान ही परब्रम्ह है|
छांदयोग्य उपनिषद में परब्रम्ह को ही कमल नयन वाले या पुण्डरीकाक्ष नाम से पहचाना गया हैं। यह इस गाथा से
बताया गया है, ‘तस्य यथा काप्यासम् पुण्डरीकामेवामाक्षिनी’। श्री आलवन्दार स्वामीजी (श्री यामुनाचार्य
स्वामीजी) ने अपने स्तोत्र रत्न में इसकी पहचान “कं पुण्डरीक कनयन” इस श्लोक से बताया है| इसिलीए पूर्वाचार्यों
के ग्रन्थो मे कमल नयन वाले भगवान ही परब्रम्ह है ऐसा माना गया है|
(II) विवादों के उपर की गयी व्याख्यायें
छांदयोग्य उपनिषद की गाथाये ही व्याख्यायों में आने वाली कठिनाईयों के विवादों की जड़ है| यादव प्रकाश ने उसे
सरलता से लिया और तुच्छ व्याख्या बनायी| उन्होंने परब्रम्ह की नयनो को बन्दर के पिछले भाग से मिलता हुवा
ऐसा वर्णन किया| उन्होंने परब्रम्ह की महिमा को सबके सामने लाना जरूरी नहीं समझा और इस व्याख्या से
परब्रम्ह का पूर्णत: मज़ाक उड़ाया| सभी श्रीवैष्णवों का यही मानना है की इस स्वरूप विरूद्ध व्याख्या से श्री
रामानुज स्वामीजी को बहोत दु:ख हुवा|
श्री शंकराचार्य ने अप्रत्यक्ष रिती से इन कठिनाईयों पर तुलनात्मक कार्य किया| उन्होंने कहा की बन्दर का पिछला
भाग प्रत्यक्ष रिती से परब्रम्ह के नयनों के समान है यह योग्य नही है| इसके बजाय कमल (पुण्डरीक) यह विशेषण
परब्रम्ह के नयनो के लीए योग्य है| जब की श्री शंकराचार्य यह दिखाने के लिए सफल हुए है की परब्रम्ह ही
पुण्डरीकाक्ष या कमल नयन वाले भगवान है और उच्चतर परब्रम्ह की छवि को बन्दर के पिछले भाग से तुलना
करना यह मुर्खता है, सारे शास्त्रों में बन्दर के पिछले भाग से क्यों तुलना की गयी है यह समझ नहीं आता हैं, यह
व्याख्या करना ही असंतुष्ट है, जब की कमल जैसे कहना ही योग्य हैं। ‘कप्यासम्’ यह विशेषण कमल की जगह
इस्तेमाल करना रूची जनक नहीं हैं|
(III) रामानुज स्वामीजी का विवरण-
इस गाथा के विवाद पर रामानुज स्वामीजी ने अच्छी तरह विस्तारित किया की कप्यासम् शब्द का अर्थ कमल ही
योग्य है। इसिलीए वेदों का अभिप्राय यही है कि परब्रम्ह को कमल नयन वाले एसे ही तुलना करें। बन्दर के पिछला
भाग इस मूर्खता के विरुद्ध उपनिषद कहते है कि सुन्दर कमल नयन वाले भगवान कि पूजा करें। रामानुज
स्वामीजी के मध्यस्थी के कारण वेद इस प्रकार कि अरूचीजनक व्याख्याओं से बचते हैं।
रामानुज स्वामीजी द्वारा दिये गये तीन मतलब।
(i) कं पिबती इति कपिह = आदित्य, तेन अस्यते क्सिप्याते विकास्यते इति कप्यासम्
कपि कौन जल पीता है यह दर्शाता है। सुरज पानी सूखाता है और इसे कपि कहते हैं। सुरज कि वजह से जो खिलता
है वह कप्यासम्। पुण्डरीक यह विशेषण यही दर्शाता है कि कमल सुरज कि किरणों से खिलता हैं।
(ii) कं पिबती इति कपिह = नलम, तस्मीन अस्ते इति कप्यासम्
कपि कौन जल पीता है यह दर्शाता है। कमल की दंडी जल लेती हैं और इसे कपि कहते हैं| जो दंडी के ऊपर स्थीर है
और जल लेता हैं वह कप्यासम् हैं। इसलिए कप्यासम् पुण्डरीक कमल को कहते है जो जल में दंडी से उत्पन्न हुआ।
(iii) कं जलम। अस उपवेसन इति जलेपि अस्ते इति कप्यासम्।।
कं जल हैं। जो जल पर ठहरता हैं वहीं कप्यासम् कहलाता हैं। इस स्थिती में कप्यासम् पुण्डरीक एक सुन्दर कमल
को दर्शाता हैं जो योग्य जल पर बढ़ता या ठहरता हैं।
सुत्र प्रकाशिका में द्रमिदाचार्यजी अपनी व्याख्याओं में छ: मतलब बताये हैं हम उसे समझते हैं। उन्हमें से
तीन में मुर्खता के कारण बन्दर को शामिल किया और उसके पिछले भाग से तुलना कि। दूसरे तीन में
बराबर मतलब दिखाया हैं, परब्रम्ह को कमल नयन वाले पुण्डरीकाक्ष ऐसे सीधे ही बताया हैं और यही
सही व्याख्या हैं। इन मतलबों को श्री रामानुज स्वामीजी ने अच्छी तरह समझाया हैं और पक्का निश्चय
किया कि इन श्लोक कि व्याख्या अनुकुल और आनंददायी हैं।
श्री रामानुज स्वामीजी ने वेदों के संग्रह में इन श्लोकों कि व्यापक व्याख्या को इस तरह बताया हैं:
‘गंभीरंभस्समुद्भूता-सम्र्स्ता- नल-रविकरविकसिता- पुंडर्क्कदलमलयटेक्सनह;’
इन विस्तृत व्याख्याओं से कप्यासम् का अर्थ स्पष्ट होता हैं। श्री रामानुज स्वामीजी इन अर्थों तक कैसे
पहुचे?
इन अर्थों को जिन्होंने आलवारों के दिव्य प्रबंधों का अनुभव किया हैं उन से जान सकते हैं| एक बार
आलवारों के शब्दों का भाव समझ जायें, उपर कि शब्दों कि रचना का अर्थ स्पष्ट हो जायेगा|
श्री रामानुज स्वामीजी ने आलवारों के शब्दों से तैयार किया हुआ अर्थ आने वाली लेख में मिलेगा|
आधार – https://granthams.koyil.org/2018/02/06/dramidopanishat-prabhava-sarvasvam-8-english/
प्रमेय (लक्ष्य) – https://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – https://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – https://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – https://pillai.koyil.org