द्रमिडोपनिषद प्रभाव् सर्वस्वम् 23

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः

द्रमिडोपनिषद प्रभाव् सर्वस्वम्

<< भाग 22

 

श्रीभाष्यकार श्रीरामानुज स्वामीजी के दिव्य आलौकिक ग्रन्थों का गंभीरतापूर्वक अध्ययन

यह स्पष्ट है कि श्रीरामानुज स्वामीजी के दिव्य ग्रन्थों का अध्ययन कर समझना है तो अध्ययन कर्ता को उनके प्रत्येक अक्षरों को बहुत निगूढ़ता एवं गंभीरतापूर्वक से समझना है | उनके शब्दों का अगंभीरता पूर्वक अध्ययन असल मे यतार्थ भावों को प्रकाशित करने मे असफल ही रहा है | श्रीआळवन्दार् (यामानुजाचार्य), पराशर भट्ट स्वामीजी, स्वामी देशिक (वेदान्ताचार्य) के ग्रन्थों कि परिस्थिति को देखने से जो भिन्नता दिखती है वह हमारे लिये बहुत ही महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह भिन्नता उनकी शैली और उनका अभिप्राय है |

श्रीरामनुज स्वामीजी का अनुयायी को यह स्वातंत्र्य है कि, वह उनके शब्दों के निगूढतम यथार्थों को समझने की जिज्ञासा को चुने ही न और केवल उनके ग्रन्थों मे प्रयोगित शब्दों के अर्थों को सतही तौर से ही समझने का प्रयास कर संतुष्ट रह सकता है | ऐसा अनुयायी असल मे भगवद् पाद श्रीरामानुज स्वामीजी के शाब्दिक भाव को नजरअंदाज कर, उनके भाव से वंचित रह जाता है | असल मे, रामानुजानुयायी को, श्रीरामानुज स्वामीजी के सुवाक्यों के अन्तरङ्ग मे छुपे, शठकोप स्वामीजी के निगूढ अर्थों और तत्त्व-विषयों को प्रतिपादित करने वाले उनके पासुरों के शब्दार्थ, को ध्यानपूर्वक और गंभीरतापूर्वक से समझना चाहिये |

इस लेख मे, हम श्रीरामानुज स्वामीजी के रचनाओं मे से ऐसा एक उदाहरण श्रीशठकोप स्वामीजी के आन्तरिक भाव को समझने के लिये नही देखेंगे अपितु उनके रचनाओं को कैसे ध्यानपूर्वक और गंभीरतापूर्वक अध्ययन करना है को समझेंगे | इससे यह सुस्पष्ट है कि भगवद् पाद जगदाचार्य श्रीरामानुज स्वामीजी ने सांप्रदायिक निगूढ तत्त्वों को सीखने, समझने के लिये, अनेक प्रसंगों मे पर्याप्त मात्रा मे छूट दिये है, जो केवल आळ्वार् से सम्बन्धित ही नही अपितु अन्य विषय तत्त्वों से भी संबंधित है |

उदाहरण के तौर पर, उनके द्वारा रचित, श्रीमद्भगवद्गीता के मङ्गल श्लोक, जो स्वामी यामुनाचार्य का गुणगान करती है :

यत्पदाम्भोरुह ध्यान विध्वस्ताशेष कल्मष: |

वस्तुतामुपयातो$हं यामुनेयं नमामि तं ||

सभी इस विषय से अभिज्ञ है कि भगवद्पाद श्रीरामानुज स्वामीजी, पञ्चाचार्य-पदाश्रित है, अर्थात् उन्होने पाञ्च आचार्यों को स्वीकार किया है | इसका कारण यह है कि, उनको श्री यामुनाचार्य के पदाश्रय उपरान्त, उनसे सीखने का पर्याप्त अवकाश नही मिला | अतैव उनको श्रीपाद यामुनाचार्य की व्यवस्था मे, उनके नियुक्त शिष्यों से श्रीवैष्णव सम्प्रदाय के विषयो तत्त्वों को सीखना पड़ा | हलांकि उनका शिक्षा अध्ययन बिल्कुल भगवान् श्री कृष्ण का महर्षि सान्दीपनि से समतुल्य है, पर शिक्षा विधि परोक्ष रूप मे इन पाञ्चों के द्वारा संपन्न हुई, क्योंकि श्रीयामुनाचार्य के शिष्य बनने की इच्छा हेतु भगवद्पाद श्रीरामानुजाचार्य का श्रीरङ्गम प्रयाण संपन्न होने के पूर्व ही, श्रीयामुनाचार्य का परमपद वास हो गया |

अत: यह संभवत: बहुत आश्चर्यजनक बात है कि भगवद्पाद श्रीरामनुजाचार्य ने अपने गीता-भाष्य के प्रारंभ मे श्रीपाद यामुनाचार्य जी की स्तुति की है पर उनके अध्ययनाचार्यों का उल्लेख मात्र भी नही है जिनसे उन्होने श्रीवैष्णव सम्प्रदाय के तत्त्वों को सीखा | इसी प्रकार से कोई यह प्रश्न पूछ सकता है कि क्यों भगवद्पाद श्रीरामानुजाचार्य ने, केवल श्रीपाद यामुन स्वामीजी की स्तुति की है और संपूर्ण गुरु परंपरा कि स्तुति क्यों नही की ? कूरेश स्वामीजी, स्वामी पराशर भट्ट, स्वामी देशिक (वेदान्ताचार्य) की स्तुतियों मे गुरु परंपरा एवं अन्य आचार्यों की स्तुति स्पस्ट रूप से वर्णित है |

इन सभी का समाधान यह है कि भगवद्पाद श्रीरामानुजाचार्य न तो गुरु परंपरा या पञ्चाचार्यों की स्तुति निश्चित रूप से नही करते पर उनका उल्लेख को अवश्य उपस्थित है |

पहला : “यत्पदाम्भोरुह” शब्द १४ अक्षरों का संयुक्त शब्द है – ‘य्’ ‘अ’ ‘त्’ ‘प’ ‘अ’ ‘द’ ‘आ’ ‘म’ ‘ब’ ‘ओ’ ‘उ’ ‘ह’ ‘अ’ | शाब्दिक अर्थ है – चरण (पाद) | इसका और एक अर्थ है – अंश | चूंकि यह शब्द १४ अक्षरों (अंशों) का संयुक्त समूह है, हम इसे ७ चरणों की जोडी (युग्म) समझ सकते है | यहाँ भगवद्पाद श्रीरामानुजाचार्य के ७ चरण युग्म है, तत्कालीन पञ्च आचार्य, श्रीपाद यामुन स्वामीजी, श्री शठकोप स्वामीजी (क्योंकि मातापिता श्लोक मे श्री शठकोप स्वामीजी के चरण युग्मों को यामुन स्वामीजी धारण करते है) | इस प्रकार से, श्री शठकोप स्वामीजी से प्रारंभ, पञ्चाचार्य की स्तुति (उपासना) भगवद्पाद रामानुज स्वामीजी ने की है |  

दूसरा : यही अभिप्राय दूसरे शैलि मे प्राप्त एवं समझ सकते है | पूर्ववर्ति पहलू मे, शाब्दिक अर्थ प्रत्यक्ष रूप और नियम संग्रह से समझा जा सकता है, पर इस पहलू मे, शब्द को गंभीरतापूर्वक समझने से शाब्दिक अर्थ समझा जा सकता है | षष्ठी तत्पुरुष समास से इस शब्द का अर्थ समाधित है जैसे “यस्य पदाम्बोरुहे” | आक्षरिक अर्थ है – जिसके चरण युग्म (कमल) | यह अर्थ निम्नलिखित तीन प्रकार से भाषांतरित है :

  • श्रीपाद यामुनाचार्य के चरण युग्म जो असल मे उनके ही चरण कमल है जिनकी उपासना भगवद्पाद श्रीरामानुजाचार्य कर रहे है |
  • श्रीपाद यामुनाचार्य के चरण युग्म जो उनके उपास्य चरण युग्म है – भगवान् , श्रीमन्नाथमुनि, श्रीशठकोप स्वामी |
  • श्रीपाद यामुनाचार्य के चरन युग्म उनके शिष्य है | यह विशिष्ट आचरण है कि शिष्य अपने आचार्य के चरण युग्म है | अत: इस प्रकार से यह उनके पाञ्च आचार्यों को दर्शाता है |

तीसरा :  एक और विशेष बात गौर करने के लिये यह है कि भगवद्पाद श्रीरामानुजाचार्य ने ‘प’ शब्द से ही पदामबोरुह शब्द प्रयोग किया है | यह स्पस्टीकरण है कि श्रीपाद यामुन स्वामीकी के शिष्य वृन्द मे, वह शिष्य जिनका नाम ‘प’ से शुरु होता है अग्रगण्य है | श्री रामानुजाचार्य के ऐतिहासिक प्रमाणों से हमे ज्ञात है कि स्वयं पेरिय नम्बि (परांकुश दास स्वामीजी, पूर्णाचार्य) ने रामानुजाचार्य को वैष्णवी दीक्षा प्रदान की थी | आप पाञ्च आचार्यों मे सर्वप्रथम है | आप गुरुपरंपरा मे परांकुश दास से संभोधित है जो ‘प’ शब्द से शुरू होता है | अगर इस शब्द को श्री शठकोप स्वामीजी के प्रारंभ सभी आचार्यों पर्यन्त तक की गणना है, तो फिर ‘प’ शब्द का प्रयोग उपयुक्त है क्योंकि परांकुश नाम श्री शठकोप स्वामीजी का ही प्रारंभिक उपाधि है |

इस प्रकार से भगवद्पाद रामानुजाचार्य, पूरे गुरु परंपरा (शठकोप स्वामीजि से प्रारंभ) अपने तत्कालीन पाञ्च आचार्य पर्यन्त, सभी की स्तुति की है | इसी कारण, तिरुवरङ्ग स्वामीजी (तिरुवरङ्गत्तु अमुदानार्), भगवद्पाद रामानुजाचार्य के तत्कालीन शिष्य, अपने आचार्य के, पूर्वाचार्यों और आळ्वारों के दिव्य ज्ञान मे अभिज्ञ एवं इस संबंध को दर्शाकर, अपने आचार्य की स्तुति करते है |   

यह सच मे भगवद् पाद श्रीरामानुजाचार्य के विद्वत् प्रतिभा का चिह्न है | एक आम व्यक्ति अपनी निपुणता के आधार पर केवल बाह्य अर्थ को व्यक्त करने मे ही समर्थ है | पर इसके विपरीत मे, भगवद् पाद रामानुजाचार्य इतने निपुण निष्णात है कि आप तीक्ष्ण एवं दीर्घ आलोचना को बढावा देने के लिये सभी स्थरों मे रहस्य मर्मज्ञों को छुपाये हुए है कि ये आपके पदाश्रितों को नित्य आनन्द प्रदान करते है जो इन मर्मज्ञों की दिव्यानुभूति मे निमग्न है और आपके प्रबल शब्दों का गहन चिन्तन करते है |  

आधार – https://granthams.koyil.org/2018/02/21/dramidopanishat-prabhava-sarvasvam-23-english/

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