श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
वरदराज भगवान् आविर्भाव कि कहानी
ब्रह्मा के बुलावे पर विश्वकर्मा तुरन्त उपस्थित हुए I उन्हें इस पवित्र स्थान को सुंदर और सुशोभित करने का कार्य सौंपा गया था I उन्होंने भी इस महान अवसर को स्वेच्छा से स्वीकार कर लिया।
ब्रह्मा समझाने लगे I “पर्याप्त संख्या में महलों का निर्माण होना चाहिए सभी सुविधाओं के साथ I यज्ञ को देखने के लिए आने वाले अतिथि गण को किसी भी तरह की असुविधा या कठिनाई का अनुभव नहीं होना चाहिए I वे सुविधापूर्ण होना चाहिए” I
विश्वकर्मा, एक विनम्र स्वर में पूछे की “ओह, चतुर्मुख ब्रह्मा! क्या मुझे इस यग्न में भाग लेने वालों की संख्या के बारे में बता सकते है?”
पितामह (ब्रह्मा) ने प्रसन्नतापूर्वक उत्तर दिए कि “विश्वकर्मा ! ध्यान से सुनो” I
यह अश्वमेध यग्न सभी यग्नों में सर्वोच्च है, सभी पाप मिटा देगा और हटा देगा I यह मुख्य रूप से और सीधे सर्वोच्च परमात्मा की आराधना करने के लिए है I
इसके अतिरिक्त, यह सत्य व्रत क्षेत्र हमें किसी भी बाधा के बिना यहां प्रारम्भ किए गए अच्छे कर्मों को सम्पूर्ण करने में सक्षम बनाता है I बुलंद हस्तिगिरि जो हमें पापों से मुक्ति प्रदान करता है, यहां स्थित है I ये इस स्थान की श्रेष्ठता है I
यग्न श्रेष्ठ है, यह स्थान उतना ही श्रेष्ठ है I बहुत से स्वेच्छापूर्वक आ जायेंगे I क्या यह ऐसी तपस्या का वीक्षण आनन्दमय और कल्याणकारी नहीं है?
इसके अतिरिक्त, शास्त्र यह निर्देश देता है कि हमें यग्न में उपस्थित होने के लिए निमंत्रण की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है। यहां तक कि बिना बुलाये भी, हमें यग्न में भाग लेना चाहिए I अतः, आस्थिक (जो लोग वेध और वेदान्त में विश्वास करते हैं), स्वेच्छा से पधारेंगे। देव, मनुष्य और अन्य भी उत्सुकता से पधार सकते हैं।
तैयारी इस अवसर के अनुकूल होनी चाहिए I यग्न करने के लिए प्रांगण, इसके लिए मंच, रसोई घर, भोजन कक्ष, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए रंगभूमि और अतिथि छात्रावास इस तरह शानदार और भव्य ढंग से निर्माण होना चाहिए I
जब ब्रह्मा ने समाप्त किया तब विश्वकर्मा ने कहा कि “ऐसा ही होगा” I बिना विलंब के तेजी से विश्वकर्मा ने जो कार्य करने के लिए निर्देश मिला था उसे सम्पूर्ण किया।
उन्होंने हथागिरी को हि उत्तर वेदि बना दिया जो भव्य और महान था I हमारे वरद राज भगवान इसी जगह से उभरने और प्रकट होने जा रहे है I अग्निहोत्र में तीन प्रकार की अग्नि होती है – आहवनीयम, गार्हपाथ्यम और दक्शिनाग्नी I इनके सामने की जगह महावीधी कहलाती है I अन्य स्थान भी हैं अर्थात् साधस और हवीरधानम…प्रारंभ में, यग्न करने के लिए अग्नि उत्पन्न की जाएगी I यह जगह को उत्तर विधि के नाम से भी जाना जाता है I
विश्वकर्मा ने अपने कार्यभार को एक अत्युत्तम, वैभवशाली रीति से पूर्ण किया था। उन्होंने सत्य व्रत क्षेत्र को राजधानी (शहर) की तरह प्रतीत किया।
उन्होंने मनोहर ढंग से निर्माण किये गए शहर का निरीक्षण करने के लिए ब्रह्मा को आमंत्रित किया। अती प्रसन्नता के साथ अयन उधर पहुंचे और देखा। वोह अत्यन्त संतुष्ट और मुद्रित हुए। उन्होंने विश्वकर्मा के क्रियान्वयन की भव्यता की सराहना की।
ब्रह्मा और अन्य दर्शक शहर की सुंदरता और महिमा से चकित थे। महलों को वज्र, वैडूर्य, सोना और उनकी समानता की अन्य सामग्रियों से अलंकृत किया गया था। अलंकृति विशेषज्ञ, कारीगरों, मूर्तिकारों और अन्य द्वारा सक्षम रीती से कुशलतापूर्वक की गई थी।
अयन ने गर्व से घोषित किया “इस समय से यह पवित्र स्थल लोकप्रिय प्रशंसित नाम कान्ची से जाना जायेगा”।
“किस कारण से? यह पहले से ही कान्ची नाम से जाना जाता है, जो धरती माता अपने कमर पर अलंकृत किये जाने वाले आभूषण का समानार्थी है” I
फिर क्यों ब्रह्मा इतने उत्साहित हैं कि वह एक नूतन नाम से इस शहर को नामकरण कर रहे हो !!” कई लोग अचरज हुए I
ब्रह्मा ने कहा “का मेरे नामों में से एक है। यह जगह कान्ची है क्योंकि यहां श्रीहरि की आराधना मेरे द्वारा की जा रही है, जो “का” है। यह निवास सतगुण और उन्नति को बढावा देनेकी शक्ति से प्रतिभासंपन्न है”। आकाश से फूलों कि वर्षा हुई।
आनंद की कोई सीमा नहीं थी, और ब्रह्मा का मुख आनंद के साथ चमक गया।
परंतु उनके पुत्र वशिष्ट उदास और निराश दिखे। ब्रह्मा ने वशिष्ट से कारण पूछा।
उनके उत्तर ने ब्रह्मा को उतना ही उदास बना दिया। कारण?
आइए अगली श्रंखला तक प्रतीक्षा करें ..
अडियेन श्रीदेवी रामानुज दासी
Source – https://granthams.koyil.org/2018/05/16/story-of-varadhas-emergence-7-english/
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