श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नमः
<< श्रीकलिवैरिदास (नम्पिळ्ळै) का वैभव १
पिछले लेख (अन्तिमोपाय निष्ठा – ७ – श्री कलिवैरि दास (नम्पिळ्ळै) का वैभव १) में हमने श्री कलिवैरि दास (नम्पिळ्ळै) के जीवन में घटित कई घटनाओं के माध्यम से श्री कलिवैरि दास (नम्पिळ्ळै) की महानता देखी। अब हम अपने पूर्वाचार्य के जीवन में घटित सबसे अद्भुत घटनाओं को देखेंगे और इस क्रम को आगे जारी रखेंगे।
मलै कुनिय निन्ऱ पेरुमाळ् (श्री कुरेश (आऴ्वान्) / भट्टर् की वंशावली) हमारे संप्रदाय के नेता हैं और अब श्री रंगम में रह रहे हैं। उनके पिता का हमारे जीयर श्री वरवरमुनि (मामुनिगळ्) की ओर बहुत लगाव था क्योंकि उन्होंने देखा कि श्री वरवरमुनि (मामुनिगळ्) ने तिरुवाय्मोऴि और अन्य व्याख्याअों के पूरे ईडु ३६००० पडि व्याख्या को याद (स्मरण रखना) किया था। वह प्यार से हमारे जीयर को “३६००० पेरुक्कर्” (जो ईडु ३६००० पडि व्याख्या “के रूप में बुलाते हैं, और खुशी से अपने क्षणों को श्री वरवरमुनि (मामुनिगळ्) के साथ बिताते थे। उस समय परीतापि वर्ष, आवणि महीने, श्री रंगनाथ (नम्पेरुमाळ्) तिरुप्पवित्रोत्सव मन्डप में आते हैं। बड़ी सभा में, श्री रंगनाथ (नम्पेरुमाळ्) स्वयं अपने जीयर श्री वरवरमुनि (मामुनिगळ्) को अलग से आमंत्रित करते हैं और उन्हें श्री शठकोप (नम्माऴ्वार्) और उनके माला, तीर्थ, प्रसाद आदि के साथ आशीर्वाद देते हैं। फिर वह श्री वरवरमुनि (मामुनिगळ्) को निर्देश देते हैं “कल से, हमारे पेरिय तिरुमण्डप में (पेरिय पेरुमाळ् सन्निधि के सामने), तिरुवाय्मोऴि के दैवीय अर्थों को श्री कलिवैरि दास (नम्पिळ्ळै) के ईडु ३६००० पडि व्याख्या के माध्यम से समझाओ। अगले दिन श्री रंगनाथ (नम्पेरुमाळ्) अपने नाचियारों, श्री विश्वक्सेन (सेनै मुदलियार्), श्री शठकोप (नम्माऴ्वार्), श्री रामानुज (यतिराजर्) (और अन्य सभी आऴ्वारों, आचार्यों) के साथ मण्डप में आते हैं और बड़े जीयर (पेरिय जीयर) औपचारिक रूप से श्रीवैष्णवो की एक बड़ी सभा के बीच में कालक्षेप प्रारम्भ करते हैं। इस घटना को निम्नलिखित पासुर में समझाया गया हैः
नल्लतोर् परीतापि वरुडन्तन्निल् नलमान आवणियिन् मुप्पत्तोन्ऱिल्
चोल्लरिय चोतियुडन् विळन्गु वेळ्ळिक्किऴिमै वळर्पक्कम् नालाम्नाळिल्
चेल्वमिगु पेरिय तिरुमण्डपत्तिल् चेऴुम् तिरुवाय्मोऴिप्पोरुळैच् चेप्पुमेन्ऱु
वल्लियुडै मणवाळर् अरङ्गर् नङ्गळ् मणवाळ मुनिक्कु वऴङ्गिनारे
इस प्रकार, श्री रंगनाथ (नम्पेरुमाळ्) और अन्य ने पूरे वर्ष (१० महीने) बिना किसी रुकावट के तिरुवाय्मोऴि कालक्षेप (३६००० पडि और अन्य सभी ४ व्याख्यानो के साथ) का श्रवण किया। फिर, अंतिम दिन – आनि मूलम् दिवस पर, श्री रंगनाथ (नम्पेरुमाळ्) सभी के साथ मण्डप में पहुंचे और जीयर् के सबसे भव्य और अद्भुत शात्तुमरै प्रदर्शन को सुनते हैं। यह दुनिया में प्रसिद्ध है कि उसके बाद, श्री रंगनाथ (नम्पेरुमाळ्), जीयर् के इस अद्वितीय सेवा से प्रसन्न भगवान् ने श्री वरवरमुनि (मामुनिगळ्) को महान सम्मान दिया (अनुवादक का टिप्पणीः उन्हें स्वयं का शेष पर्यङ्कम् और श्रीशैलेश दयापात्र तनियन् का पेश कर – इस प्रकार श्री वरवरमुनि (मामुनिगळ्) को अपने आचार्य के रूप में स्वीकार करते हुए और तुरंत इस तनियन् को सभी दिव्य देशों में प्रचारित किया।) यही कारण है कि जीयर् ने महान विनम्रता और कृतज्ञता के साथ कहा कि इस महान कैङ्कर्य में उन्हें शामिल करने के लिए श्री रंगनाथ (नम्पेरुमाळ्) द्वारा उन्हें दी गई दिव्य / विशेष आशीर्वाद पर प्रतिबिंबित किया गया था।
नामार्! पेरिय तिरुमण्डपमार्!
नम्पेरुमाळ् तामाग नम्मैत् तनित्तळैत्तु
नी माऱन् चेन्तमिऴ् वेदत्तिन् चेऴुम् पोरुळै नाळुमिङ्गे वन्तुरै
एन्ऱेवुवते वाय्न्तु
मैं कौन हूँ? इस पेरिय तिरुमण्डप की महिमा क्या हैं? यह स्वयं श्री रंगनाथ (नम्पेरुमाळ्) के लिए एक महान आशीर्वाद है, (जिन्हाने) हर दिन (पूरे वर्ष के लिए) द्राविड वेद (तिरुवाय्मोऴि के माध्यम से ३६००० पडि व्याख्या) के दिव्य अर्थों को समझाने का कालक्षेप कैङ्कर्य मुझे महान स्नेह से सौंपा ।
इसी तरह, उन दिनों के महान आचार्यों / श्रीवैष्णव जो श्री वरवरमुनि (मामुनिगळ्) से बहुत जुड़े हुए थे उन्होंने निम्नानुसार घोषित किया।
वलम्पुरियायिरम् चूऴतरवाऴि मरुङ्गोळुरु चेलम्चेलनिन्ऱु मुऴुङ्गुग पोल्
तनतु तोण्डर् कुलम् पल चूऴ् मणवाळ मामुनि कोयिलिल् वाऴ
नलङ्गडल् वण्णन् मुन्ने तमिऴ् वेदम् नविट्रनने.
तारार् अरङ्गर् मुन्नाळ् तन्तामळित्तार् चीरार् पेरिय तिरुमण्डपत्तुच् चिऱन्ताइ
एन् आरावमुतनैयान् मणवाळ मामुनियैयऴैत्तु एरार् तमिऴ् मऱै इङ्गेयिरुन्तु चोल् एन्ऱनने
श्री वरवरमुनि (मामुनिगळ्) जो अपने हजारों शिष्यों से घिरे थे, श्री रंगम में रहते थे और श्री रंगनाथ (एम्पेरुमान्) के सामने तमिऴ् वेद के अर्थों को समझाते थे। ऐसा करने के लिए, सबसे पहले, सुन्दर श्री रंगनाथ, ने श्री वरवरमुनि (मामुनिगळ्) को अपने पेरिय (बड़े) तिरुमण्डप में आमंत्रित किया और उन्हे तिरुवाय्मोऴि के सबसे सुन्दर अर्थ प्रकट करने के लिए कहा।
इस प्रकार, उनके शिष्यों ने श्री वरवरमुनि (मामुनिगळ्) के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की और उन्होंने श्री रंगनाथ (नम्पेरुमाळ्) के दिव्य कार्य को भी सराहना की जहां उन्होंने महान एहसान किए जो हमारे जीयर श्री वरवरमुनि (मामुनिगळ्) के अलावा किसी अन्य के साथ नहीं किए गए थे।
अब, मैं (परवस्तु पट्टर्पिरान् जीयर् (भट्टनाथ मुनि)) ने अपने आचार्य (श्री कलिवैरि दास (नम्पिळ्ळै) वैभव के बीच) की महिमा बोलना शुरू कर दिया क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि
- गुरुम् प्रकाशय नित्यम् – किसी को हमेशा अपने आचार्य / गुरु की महिमा करनी चाहिए
- कण्णिनुण् शिरुत्ताम्बु – एण्डिशैयुम् अऱिय इयम्बुकेन् ओण्टमिऴ्च् शठगोपन् अरुळैये – मैं (मधुरकवि आऴ्वार्) सभी दिशाओं में (हर जगह) श्री शठकोप (नम्माऴ्वार्) की दया प्रकट और महिमा देता हूं
- श्रीवचनभूषण- वक्तव्यम् आचार्य वैभव – आचार्य की महिमा के बारे में बात करना कर्तव्य है
अनुवादक का टिप्पणीः इस प्रकार, हमने आनि तिरुमूलम् पर श्री रंगनाथ (नम्पेरुमाळ्) की स्तुति / सम्मान पेरिय जीयर् के उपर स्वयं का आत्मसमर्पण करके, उनको अपना आचार्य मानके और स्वयं का शेष पर्यङ्क और किसी भी चीज़ से ज्यादा सबसे शानदार महिमा की पेशकश करने वाले तनियन् को पेश किया “श्रीशैलेष दयापात्रम् दीभक्त्यादि गुणार्णवम्, यतीन्द्र प्रवणम् वन्दे रम्य जामातरम् मुनिम्” और सभी दिव्य देशों में इसका प्रचार किया, इत्यादि…श्री रंगनाथ (नम्पेरुमाळ्) खुद को पूरी तरह से देखने और उसका पालन करने के लिए अपने आचार्य श्री वरवरमुनि (मामुनिगळ्) की ओर अपने अन्तिमोपाय निष्ठा का प्रदर्शन कर रहा है।
जारी रहेगा……
अडियेन भरद्वाज रामानुज दासन्
आधार – https://granthams.koyil.org/2013/06/anthimopaya-nishtai-8/
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