वरदराज भगवान् आविर्भाव कि कहानी १३

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

वरदराज भगवान् आविर्भाव कि कहानी

<< भाग १२ – २

वेगवती काँची की ओर तेजी से बड रही थी। भगवान दो स्थानों में बाँध के रूप में थे । भगवान के प्रकट किए गए रूप का दर्शन करने के बाद, वह पुनः दर्शन (झलक) कि अत्यन्त अभिलाशित थी। ‘इच्छा’ (देखने कि) उनके दर्शन की एक मात्र आवश्यकता है।

पेरियाळ्ळवार (श्री विश्णुचित्त स्वामीजी) और आण्डाल  (पिता और पुत्री) ने अपने भक्ति भजनों में दृढ़ता से यही बताया है कि उनके पास पहुंचने के लिए मुख्य आवश्यकता उनके पास पहुंचने की इच्छा है – “कूडुमनमुडैयीर्गळ् वरम्बोज़्हि वन्दोल्लै कूडुमिनो” (तिरुपल्लाण्डु) & “पोदुवीर् पोदुमिनो” (थिरुप्पावै / तिरुपावै) I

तिरुमंगाई आळ्ळवार (श्री परकाल स्वामीजी) भी इसका समर्थन करते हैं – “आसैयो पेरितु कोळ्ग अलैकडल् वण्णर् पाले” I (आइये सागर वर्ण के पेरुमाल की ओर हमारी इच्छा सर्वोत्तम रहे) I

नारायण दर्शन का यह जुनून ने सरस्वती को नदी बनाया, उनकी ये रफ्तार थी।

नदी तरंगों की आवाज़ में उनकी उद्देश्य गूंजती है, कि वह वास्तव में क्या सोच रही थी ?!

उनकी आराधना नहीं करने का दुःख हालांकि वह दो बार उनका स्पर्श करके बह गई, उन्हें कष्ट दे रही थी। वह उन्हें एक और बार दर्शन करने की अत्यन्त अभिलाशी थी ! इस बार, वह निश्चित थी कि वह मात्र प्रार्थना के लिए हि नहीं , अपनी नेत्रों को उन पवित्र चरणों पर निश्चित कर के सदा के लिए उनके साथ रहना चाहती थी। ऐसा प्रतीत हुआ कि यह सोच उन लहरों की आवाज़ में प्रतिबिंबित हो रही थी I

देवताओं और ब्रह्मा ने स्वयं को भगवद अर्पण कर दिया था। वेह सब दृढ़विश्वासी थे कि भगवान जिन्होंने उन्हें पहले सभी विपत्तियों और खतरों से रक्षा की, वे कांची में और हस्थिशैलं (अथ्थिगिरि) के आस पास उनके उद्धारकर्ता बने रहेंगे।

वह उन लोगों के लिए सरल और आसान है जो मन में उनके लिए प्रेम समेटे रहते हैं। तो वह निश्चित रूप से प्रकट होंगे।

एक बार फिर सेतू (बांध) के रूप में सम्मोहक और आकर्षक भगवान् प्रकट हुए देखने वालों को तृप्त करने के लिए।

पसंद, नापसंद, क्रोध,अवमानता ​​और अन्य बुरे गुणों से विचलित उन सहयोगियों से रहित, सरस्वती ने भगवान् के पवित्र चरणों को भक्ति प्रेम से स्पर्श किया। शर्मिंदा और विनम्र महसूस होते हुए, उनका मन बोझ और प्रेम से भरी हुई भगवान् के श्री चरणों की महिमा गा रही थी।

हस्थिशैलं के पश्चिमी तरफ में , उद्धारकर्ता “वेगसेतु” के रूप में शयित थे – एक बंद जो तेजी बहती नदी को रोकने और सीमित करने के लिए था।

चमचमाती नेत्रों और अनश्वर मुस्कुराहट के साथ, उन्होंने संबोधित किया कि….

“मत्पादजायः गंगाया अपि ते स्रैश्ट्यम् उत्तमम्; दत्तम् मया अदुना क्षेत्रे मदीये पुन्या वर्तने ।
यस्मात् वेगात् अनुप्राप्ता क्षेत्रम् सत्यव्रतम् प्रतिः तस्मात् वेगवति इति आख्याम् लब्द्वा वस मतान्जया ।
अहम् चापि उत्तरे तीरे तव वत्स्यामि शोभने ॥” –

(पुराणों से लिये गयी इन पवित्र श्लोकों को पढ़ने और श्रवण करने से हमें अत्यधिक लाभ होगा। ये पाठकों के लाभ के लिए यहां जोड़े गए हैं)

सरस्वती! आप गंगा से अधिक उत्कृष्ट रूप में सुप्रसिद्ध होंगी। हर कोई आपका अभिवादन करेगा, जो वेगवती के नाम से जाना जाएगा। मैं उत्तरी तट पर सदा के लिए विश्राम करूँगा। वादे और वरदान दिये वेगानैपेरुमाल ने  (वेगानै से बने वेकनै और अंतिम में वेक्का बन गए)।

प्रसन्न होके और खुशी से सरस्वती उन पर प्रशंसा बरसायी थी।

“वेगबागै (वेगवती) नाम मेरे मन के करीब है। “आपका” नाम एक बाढ़ वाली नदी को दिया गया था। मेरे प्रभु! जब मैं तीव्र गती से आगे बढ़ने लगी, तो आपने रोक के मुझे शरण दीया ।

मेरे प्रभु, जो यहां वेका में शयन मुद्रा में विश्राम कर रहे हो, उनकी प्रशंसा करने मेरे पास सामर्थ्य नहीं है।

आपकी यह दासी “उन्निय योगथु उराक्कथ्थीनै” (आप योग निद्रा के रूप में) इस दर्शन से धन्य हो गयी है। क्या आपने स्वेच्छा से इस जगह “पातन पाळी” (भुजंग शय्या) में विश्राम करने के लिए चुना है?

ओह काँची निवासी! आपने सम्मानित अन्नै (बांध) रूप आज ही नहीं लिया है।

वेद घोषित करता है कि “अमृथस्य एश सेतु:” – आप किसी भी व्यक्ति का एक अन्नै (उद्धारकर्ता) हैं जिनकी दृष्टी इस संसार के महासागर से मुक्ति पे हो ।

आपका सौंदर्य और त्वचा के रंग को देखते हुए हम आश्चर्य हो रहे हैं कि इंद्र का नील मणि बांध के रूप में यहां तो नहीं है?

आप सभी संसारों के उद्धारक है, मेरे बीच में भुजंगों के शय्या पे लेटे हैं। तीनों लोकों के सभी निवासी इस दृश्य को देखकर प्रसन्न होंगे, जो उनके मन और नेत्रों को तृप्त कर देगा ।

मैंने अपना गुस्सा उतार दिया है। मुझे अपने स्तर का एहसास होगया है। एक व्याकुल मन से, मैंने असंख्य आतंक पैदा किए थे। परंतु आपने क्रोध और गुस्से के बजाय मुझे (अपने भक्त के रूप में) अपना लिया है।

इतने सारे शब्दों से, सरस्वती ने पूजा और श्रद्धा अर्पित की। खुशी से ब्रह्मा भी शामिल हो गए।

अन्नै (भगवान्) ने इस इन्नै को आशीर्वाद दिया ( तमिल में यह एक जोड़ी सूचित करता है; ब्रह्मा और सरस्वती की जोड़ी)।

जैसा मैं बोलता हूं वैसे ही मैं कार्य करता हूं (मेरे शब्द और कर्म सामंजस्य होते हैं)। मैं बीजगिरी और तिरुपारकडळ में प्रकट हुआ और आप पुनः मेरा दर्शन के लिए उत्सुक थे। मैं आने के लिए सम्मत हुआ। जैसा कि मैंने कहा था, मैं आ गया हूं। संसार के एक मात्र उद्धारकर्ता और संरक्षक के रूप में, मैं हमेशा के लिए यहां विश्राम करूँगा। सभी मुझे संकट मोचक और संरक्षण के अधिकारी के रूप में प्रार्थना अर्पण करेंगे ” भगवान् ने कहा।

उन्होंने जारी रखा “ब्रह्मा! चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है, वेल्वी सम्प्पोर्ण रीती से पूर्ण होगा। भयभीत न हो। आपकी आंखों के सामने जल्द ही पुरस्कार प्रस्तुत होगा। वह पुरस्कार केवल आपके लिए नहीं है। यह सारे संसार के लिए एक उपहार है।

उसके लिए प्रतीक्षा करें !!

हम भी प्रतीक्षा करेंगे !!

अडियेन श्रीदेवी रामानुज दासी

आधार – https://granthams.koyil.org/2018/05/21/story-of-varadhas-emergence-13/

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