वरदराज भगवान् आविर्भाव कि कहानी १५ – २

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

वरदराज भगवान् आविर्भाव कि कहानी

<< भाग १५ – १

ब्रह्मा ने भगवान् से प्रार्थना की कि ईश्वरीय रूप से थिरु अथ्थिगिरी (तिरु अत्तिगिरि) में स्थायी रूप से रहें जो प्रकाश के रूप में खड़ा हो, जो भक्तों द्वारा पूजित हो। और भगवान के मुंह से यह शब्द निकले कि “तो यही हो” …

ब्रह्मा भी काँची में स्थिर रहने की अभिलाषा करते थे। “आरावमुधु” का यह आनंद और स्वाद लेने के बाद, (अनंत सुधा, अमृत) आनंद लेने के बाद, सत्यलोक वापस जाने के लिए अनिच्छुक थे ।

उन्होंने वेळमलई के भगवान को अपनी इच्छा व्यक्त की कि “निथ्यम निरपरादेशु कैंकर्येशु नियङ्गश्व माम” – उन्हें यहां स्वयं काँची के देव पेरुमाळ् के चरणों में सेवा करने की आज्ञा दे दीजिये।

परंतु भगवान ने अन्य रूप में सोचा “चतुर्मुख! मैं आपकी भक्ति का अभिवादन करता हूं। परंतु (याद रखों) आप मेरे निर्णय द्वारा ब्रह्मा पद पर आसीन हो और तदनुसार अपने कर्तव्यों को कार्यान्वित कर रहे हो। सत्यलोक के लोग आपकी अनुपस्थिति के कारण आपको याद कर रहे हैं और वे उत्सुकता से आपकी वापसी का इंतजार कर रहे हैं। यह मेरी इच्छा है कि आप वहां जाए। मै हमेशा के लिए आपके पवित्र, निश्कल्क मन में बसा रहूँगा । भय भीत न हो। शीघ्रता से आप अपने लोंक पहुंचें।

मैं वेल्वी (वेळ्वि) के दौरान आपके आचरण और प्रेम से प्रसन्न हूँ। आपने देवतओं के बजाय हविर्बागस सीधे मुझे अर्पण की। दु:खी, देवतओं ने आपको इसके बारे में पूछा तो आपका उत्तर स्वर्णाक्षरों (अत्यधिक प्रशंसा योग्य) में मुद्रित करने योग्य है।

रीति के अनुसार अलग-अलग देवताओं को हविर्भागम (हविर का आहार) अर्पण की जाती है। परंतु अक्सर यह याग क्षुद्र प्रतिफल और आनंद के उद्देश्य से किये जा रहे हैं। परंतु यह याग किसी भी पुरस्कार या प्रतिफल के लक्ष्य से नहीं था। यह उनकी अराधना करना था जो पुरस्कारों को पुरस्कृत करता है। तो आपने सीधे सर्वोच्च भगवान् को हैविस अर्पण करने का प्रयास किया और आपने ऐसा हि किया।

मैं आपके संकल्प का अभिवादन करता हूँ और आपको शुभकामना देता हूं” वरदराज भगवान् ने कहा।

चतुर्मुख (ब्रह्मा) ने याद किया कि पेररुराल ने क्या कहा था। उन्होंने उल्लेख किया था कि आने वाले दिनों में उनके पास काँची में पूरा करने के लिए कुछ कार्य थे। विवरण जानने के लिए उत्सुक, ब्रह्मा ने हरि से पूछा।

“सुनो” भगवान् ने कहना प्रारंभ किया “यह पहले युग में, क्रुत युग, आपने मेरी पूजा की। इसी प्रकार, अगले युग, त्रेता युग में, गजेंद्र प्रार्थना करेंगे।

ध्वापर युग में, ब्रुहस्पाती जिसे पहले आपने शाप दिया था और कुछ अन्य शापों से भी पीड़ित, मुझे प्रार्थना करने के लिए यहां आएगा (पाठक ब्रह्मा और ब्रुस्पाथी के बीच आपसी शाप का आदान-प्रदान याद करें)।

कलियुग में आदिशेष प्रार्थना अर्पण करेंगे।

निरंतर मैं यहां अथ्थिगिरी (अत्तिगिरि)  में मामनिवन्नन के रूप में स्थित रहूंगा, जो पवित्र सनातन धर्म को स्थायी रखने के लिए अनुग्रह और लाभ प्रदान करता रहूँगा, साधु संरक्षण करता रहूँगा । ऋषि भृगु की पुत्री पेरुन्देवी के साथ परिणय करूंगा । जैसा कि पेरुन्देवी मनालन (पति), कलि युग वरदराज भगवान् के रूप में, सही राह की मार्गदर्शक के रूप में, भक्तों के लिए सुलभ रूप से प्राप्त करने योग्य, मैं यहां स्थित होके सुरक्षा और संरक्षण प्रदान करता करूँगा।

मणवाल मामुनिगळ् (श्री वरवरमुनि) ने भी प्रस्तुत किया है

“अत्यापि सर्वभूतानाम अभिष्ट पल ध्यायिने I प्राणतार्ति हरायास्तु प्रभवे मम मंगलाम II”

– उस नेता के प्रति मैं अभिनंदन करता हूँ जो अब भी सभी आंखों का लक्ष्य बने हए है, जो उदारता से अनुग्रह प्रदान करके भक्तों को दुःखों से विमुक्त करते हैं।

मैं आपको विशिष्ट उत्सव (पवित्र अनुष्ठान कार्य), ब्रह्मोत्सव को अनोखे रीति से प्रशासित करता हूं, जो मेरे लिए तीर्तवारी (पवित्र स्नान) में समाप्त होता है (हस्त दिवस – चैत्र मॉस में जन्म हुआ)।

यह श्रवन नक्षत्र के दिन वैशाख महीने में मनाया जाएगा।

ब्रह्मा ने सम्मति दिया कि वे आदेशानुसार कार्य करेंगे।

वह एक उपयुक्त विधि से उत्सव को संपन्न करने के बाद अपने लोक वापस प्रस्थान कर गये।

वारदराज भगवान् ने अपने मन में विवेचन किया।

मैंने ब्रह्मा को सूचित किया है कि आदिशेष कलीयुग में मेरी अराधना करेंगे । मेरे अलावा और किसे पता होगा कि मेरे पास और कौन सी योजनाओं है।

श्रीवैष्णव सम्प्रदाय के पवित्र सिद्धांत को पोषित करने के लिए, नम्माळ्ळवार (श्री शठकोप स्वामीजी) को “मयर्वरा माधिनलम” (मन और ज्ञान इस संसार के काले बादलों से मुक्त) से धन्य किया जाना होगा । मुझे अपने गरुड़ सेव की प्रशंसा में भूदत्ताळ्ळवार (श्री भूत योगी स्वामीजी) के गीत को सुनकर आनंद लेना है। मुझे तिरुमंगै आळ्ळवार (श्री परकाल स्वामीजी) को ऐश्वर्य और धन दान देना है ताकि वे चोळ राजा के कारागार में दिन काटना न पड़े “वाडिनेन वाडि” (पेरिय तिरुमोली १-१-१)।

मुझे आळवन्दार् (श्री यामुनाचार्य स्वामीजी) को मार्गदर्शन करना है जो मुझे सम्मानित करेगा, फिर मेरे रामानुज – भूतपुरीसर्, यतिराजा (साधुओं के राजा) को आमुधलवन (सर्वप्रथम और सबसे प्रमुख) के रूप में पहचाने जायेंगे।

मुझे पेरुन्देवी के साथ मिलकर मेरे बच्चे रामानुज को विन्ध्या पर्वत के जंगल से रक्षा करना है। मुझे अपना मन संतुष्ट होने तकरामानुज द्वारा सालैक् किणरु (सड़क के किनारे का एक कुवा) से लाया गया मीठा पानी पीना है I

मुझे थिरुक्कछि नंबि से कितना बात करना है, आवश्यक रूप से रामानुज के लिए छह शब्द है। और मैं तिरुक्कच्चि नंबी (श्री कान्ची पूर्ण स्वामीजी) के अलवट्टम (हाथ से चलाने वाला पंका) कि हवा का आनंद लेने का इंतजार कर रहा हूं।

मुझे रामानुज को अरैयर के साथ श्रीरंगम भेजना है। मुझे कुरेश दुवार गाया हुआ वरदराज स्तवम् को सुनने का आनंद लेना है। मुझे नडातुर् अम्माळ् द्वारा अर्पित किया गए दूध पीना है। मैं पिल्लैलोकाचार्य के रूप में जन्म लूँगा और अष्टादश रहस्य को प्रदान करूंगा। श्री भाश्य और ईडू पोषित किया जायेगा। मुझे वेन्कटेश घण्टा के अवतार वेदान्त देसिक पर कृपा वर्षा करना है जो आत्मा रूप में अपना हर एक सांस और जीवन मेरे साथ रहेंगे।

महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रतिदिन उभय वेदांत (संस्कृत और तमिल में वेदांत) सुनके आनंद लेना है। यह इस जगह के लिए अद्वितीय होना चाहिए, कहीं और अभ्यास नहीं किया जाना चाहिए।

मुझे प्रसिद्धि “अरुलिच्चेयल पिथ्थन ” आर्जित करना है  (जो दिव्य प्रबंध पसंद करता हो)

यदि मुझे यह सारी शोभा हो तो क्या मै नज़र ( नज़र का प्रभाव) से पीड़ित नहीं होंगा? यह अच्छा होगा यदि अगर कोई महान चित वाला एक दयालु व्यक्ति मंगालासनम (इस दृष्टी कि बुराई को दूर करने के लिए) गाता है तो।

मनवाळ मामुनि (श्री वरवरमुनि स्वामीजी), जिसे विशतवाक् शिकामणि के रूप में सम्मानित किया जाता है, श्लोकों को चिंता और लगाव के साथ मंगलाशासन के रूप में व्याख्यान करेंगे । मुझे वह श्रवण करना है।

मुझे “सम्प्रदायप्पेरुमल” (भगवान् जो पवित्र रीती रिवाज़ का ध्यान रखते हैं) का नाम आर्जित करना है, पीररुलालन ने मनन किया I

मेरे भीतर इतनी सारी इच्छाएं हैं I

उन्होंने क्रुथ युग में योजना बनाई और यह संपत्ति उनकों कलि युग में मिला।

वरदराज भगवान् के यह अद्वितीय उपकारी है। ववरदराज भगवान् आविर्भाव कि कहानी अन्य सभी कहानियों के लिए बीज है। हम इसे पढ़ने का मौका पाने के लिए भाग्यशाली हैं।

“हम दुनिया में अतुलनीय हैं” हम हमेशा ये कहेंगे !!!

समाप्त

अडियेन श्रीदेवी रामानुज दासी

आधार  – https://srivaishnavagranthamwordpress.com/2018/05/21/story-of-varadhas-emergence-15-2/

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