श्रीवचनभूषण – सूत्रं १७

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:

पूरि शृंखला

पूर्व

अवतारिका

यह समझाने के पश्चात कि यदि पिराट्टि  और पेरुमाळ् निर्णय लेते हैं कि “जब तक दोष और गुण समाप्त नहीं हो जाते, हम चेतनों को स्वीकार नहीं करेंगे”, वे दोष और गुण प्राप्त कर लेंगे, अब श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी बताते हैं कि यदि चेतन सोचते हैं कि उन्होंने मुझे इसलिए स्वीकार किया है क्योंकि मेरे दोष हैं और गुणहानी चले गए हैं, ऐसे चेतन को दोष और गुणहानी प्राप्त होंगे।

सूत्रं १७

इरण्डुम् कुलैन्ददु एन्ऱुक्किल् इत्तलैक्कु इरण्डुम् उण्डायिट्रदाम्

सरल अनुवाद

यदि चेतन सोचता है कि दोष और गुणहानी दोनों चले गए हैं, तो वह उन्हें प्राप्त कर लेगा।

व्याख्यान

इरण्डुम् कुलैन्ददु एन्ऱुक्किल्

पिराट्टि और पेरुमाळ्, जिन्होंने अब तक मुझे स्वीकार नहीं किया था, अब स्वीकार कर लिया है, क्योंकि मेरे दोष और गुणहानी समाप्त हो गए हैं! इसलिए हमारे दोष और गुणहानी चले गए हैं – चेतन इस तरह सोचते हैं।

यदि कोई इसी प्रकार बना रहे,

इत्तलैक्कु इरण्डुम् उण्डायिट्रदाम्

अकृत्य करणम् (निषिद्ध कार्यों में संलग्न होना) और कृत्य अकरण (निर्धारित कार्यों को न करना) प्राप्त करना। वह कैसा है?

अकृत्य करणम् प्राप्त करना 

ऐसे चेतन के लिए, यह सोचना वर्जित है कि “पिराट्टि और पेरुमाळ्, जिन्होंने हमें अनादि काल से स्वीकार नहीं किया था, उन्होंने अब हमें स्वीकार कर लिया है क्योंकि हमारे दोष और गुणहानी चले गए हैं”। यदि वह ऐसा करता है, तो उसे अकृत्य कारणम् प्राप्त होगा। 

कृत्य अकरण प्राप्त करना

ऐसे चेतन के लिए, यह सोचने का निर्देश दिया गया है कि “हमारे दोष और गुणहानी अभी भी हमारे अंदर बचे हुए हैं जैसा कि श्रीसहस्रगीति ३.३.४ में कहा गया है “नीचनेन् निऱै ओन्ऱुमिलेन्” (मैं बहुत नीच हूं और मेरे पास कोई अच्छे गुण नहीं हैं), स्तोत्र रत्नम ६२ ‘अमर्याध: ‘ (मैं शास्त्र की सीमाओं का सम्मान नहीं करता), वरदराज स्तवम् ७९ ‘बुध्वाचनोच​ ’  (जानकर या अनजाने में, अनगिनत गलतियों में लिप्त) और श्रीरङ्गराज​ स्तवम उत्तर शतकम ९१ “अतिक्रामन्नाग्याम्”​ (आपके आदेशों का उल्लंघन)। फिर भी, पिराट्टि और पेरुमाळ् इन दोष और गुणहानी को हमारा प्रसाद मानते हैं और हमें स्वीकार करते हैं! कितना कमाल की है!”। यदि चेतन ऐसा नहीं सोचता है, तो उसे कृत्य अकरण प्राप्त हो जाएगा। 

इस प्रकार, इस अर्थ में, वह दोष और गुणहानी दोनों प्राप्त कर लेगा।

अडियेन् केशव् रामानुज दास्

आधार – https://granthams.koyil.org/2020/12/26/srivachana-bhushanam-suthram-17-english/

संगृहीत- https://granthams.koyil.org/

प्रमेय (लक्ष्य) – https://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – https://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – https://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – https://pillai.koyil.org

1 thought on “श्रीवचनभूषण – सूत्रं १७”

Leave a Comment