पं. यादव प्रकाशाचार्य की सन्निधि में अध्ययन करते हुए श्री रामानुजाचार्य का राजकन्या को ब्रह्मराक्षस से मुक्ति दिलाना
रामानुजाचार्य कांचीमें आकर समस्त शास्त्रोंका ज्ञान सम्पादन करने हेतु यादव प्रकाशाचार्य की सन्निधिमें प्रतिदिन अध्ययन करने लगें।
रामानुजाचार्य की कुशाग्र बुद्धि को देखकर पं. यादव प्रकाशाचार्य ने अनुमान लगाया की यह शेष का अवतार है।
उसी समय उस देश की राजकन्या को ब्रह्मराक्षस का आवेग होगया था।
ब्रह्मराक्षस विमोचन के लिये बहुतसे मन्त्रज्ञ आये परन्तु असफल रहे।
यादव प्रकाशाचार्य भी ब्रह्मराक्षस को हटानेमें असफल रहे।
ब्रह्मराक्षस यादवप्रकाशाचार्य को बोला, “तुम्हारा पुरुषोत्तम छात्र रामानुजाचार्य यदि अपने पैरोंसे छूकर अपना चरणोदक मुझे दे दें तो मैं स्वेच्छया यहाँ से चला जाऊँगा।”
फिर राजा की प्रार्थना से रामानुजाचार्य आये और राजकन्या के सिर पर चरण रखकर अपना चरणोदक देकर ब्रह्मराक्षस को चले जानो की आज्ञा दी।
रामानुजाचार्य की दिव्य कृपा से सभी पापोंसे मुक्त होकर वह ब्रह्मराक्षस वैकुण्ठ लोक को चला गया।
राजा ने हर्षोत्फुल्लित होकर रामानुजाचार्य का सुवर्णाभिषेक किया।
स्वभाव से ही ईर्षालू यादव प्रकाश ने इसे अपना अपमान मानकर रामानुजाचार्य के साथ मानसिक बैर कर लिया।
तभी रामानुजाचार्य की मौसी द्युतिमती के पुत्र गोविन्दाचार्य भी कांची आकर रामानुजाचार्य के साथ यादव प्रकाशाचार्य के यहाँ अध्ययन करनें लगें।
अध्यापन करते हुये यादव प्रकाश ने श्रुतिका उपनिषत्सिद्धान्त विरुद्ध अर्थ किया, जिसे सुनकर रामानुजाचार्य ने आपत्ति दर्शाई।
इससे कृद्ध होकर यादवप्रकाश ने रामानुजाचार्य से रुक्ष व्यवहार किया। इससे दु:खी होकर रामानुजाचार्य उठकर चले गये और अपने घरमें ही अध्ययन करने लगे।