प्रपन्नामृत – अध्याय ३५
पांचरात्रागम अर्चना पद्धति
🔻रामानुजाचार्य शारदा पीठ से लौटकर काशीपुरी में गंगास्नान करके सभी परमतावलम्बी विद्वानोंको परास्त कर श्री जगन्नाथपुरी पधारें।
🔻वहाँपर रामानुज मठ की स्थापना की।
🔻एकदिन श्री जगन्नाथ भगवान के अर्चकोंको बुलाकर कह, “जिस प्रकार पांचरात्र आगम अनुसार श्रीरंगम आदि दिव्यदेशोंमें भगवान की सेवा होती है वैसेही जगन्नाथ भगवान की भी होनी चाहिये। क्योंकी यह पद्धति भगवान को अतिप्रिय है।
🔻अर्चकोंने यह बात अस्वीकार करदी।
🔻जब रामानुजाचार्य का दृढ निश्चय देखा तो अर्चकोंने भगवान जगन्नाथ से प्रार्थना की की हमे अपनी परंपरागत पद्धतिसे सेवा करनी है, हम रामानुजाचार्य की पद्धति को नही स्वीकारेंगे।
🔻भगवान ने उन अर्चकोंकी विनंती को स्वीकार करलिया।
🔻रामानुजाचार्य ने भगवान से सेवा पद्धति बदलनेके लिये पुन: पुन: निवेदन किया तो भी भगवान ने उसे अस्वीकार करदिया।
🔻इतनेपर भी दृढनिश्चयि रामानुजाचार्य वहाँके राजा, प्रजा, मित्र की सहायता से सेवा पद्धति बदलनेका प्रबल निर्धार करके रात्रि में शयन किये।