प्रपन्नामृत – अध्याय ३८
श्री पराशर भट्टार्य का अवतार
🔸एक दिवस निरन्तर वर्षा के कारण कुरेश स्वामीजी ऊञ्छवृत्ति के लिये घर से बाहर नही निकल सकें।
🔸संग्रहवृत्ति नही होनेके कारण उनके के पास कुछ भी भोजन सामग्री नही थी। अत: वें रात्रिमें भूखे ही शयन किये।
🔸रात्रिमें रंगनाथ भगवान के मंदिरमें भोग लगनेका बाजा सुनकर कुरेशाचार्य की पत्नी आण्डाल के मन मे विचार आया, “हे रंगनाथ भगवान, आप तो पंच पक्वान्न पा रहे हैं और आपका अनन्य शरणागत भूखा ही शयन कर रहा है।”
🔸रंगनाथ भगवान ने यह बात सुनते ही अर्चकोंके हाथों बहुमान के साथ कुरेशाचार्य के लिये प्रसाद भिजवाया।
🔸प्रसाद देखकर पत्नी से पूछनेपर कुरेशाचार्य को पता चला की उनकी पत्नी ने मन में भोजन के लिये चिन्ता की थी।
🔸उन्होने पत्नी को ऐसे सकाम वृत्ति के लिये डाँटा और फिर थोडासा प्रसाद स्वीकार कर बचा हुवा प्रसाद पत्नी को देदिया।
🔸इस विशेष प्रसादी से साध्वी आण्डालनें गर्भ धारण किया और वैशाख शुक्ल पूर्णिमा अनुराधा नक्षत्र को दो तेजस्वी बालकोंको जन्म दिया।
🔸गोविन्दाचार्य नें बालकोंको दृष्टिदोष ना हो इसलिए द्वयमंत्र सुनाकर मंगलकामना की।
🔸 बालकोंसे द्वयमंत्र की दिव्य सुगंधि का अनुभव कर प्रसन्न होकर यतिराज ने गोविन्दाचार्य को इन दोनों बालकोंको समाश्रित करनेकी आज्ञा प्रदान की।
🔸यतिराज ने गोविन्दाचार्य से इन्हे समाश्रित कराके इनका नाम पराशर भट्टर और वेदव्यास भट्टर रखा।
🔸पराशर भट्टर स्वामीजी ने विष्णुसहस्रनाम के भाष्य की रचना की।
🔸इस प्रकार रामानुजाचार्य ने यामुनाचार्यजी के द्वितीय मनोरथ की पूर्ति की।
🔸उधर गोविन्दाचार्य के छोटे भाई के नवजात पुत्र का नामकरण परांकुश पुर्णाचार्य रखकर रामानुजाचार्य ने यामुनाचार्यजी के तृतीय मनोरथ की पूर्ति की।