प्रपन्नामृत – अध्याय ४३
कृमिकंठ चोलराज की उत्पत्ति का कारण
🔹जिसप्रकार पुत्र के सुयोग्य होनेपर पिता अपना समस्त कार्यभार पुत्र पर सौंप देता है उसी प्रकार अपनी दोनों विभूतियों का कार्य यतिराज को सौंपकर भगवान निश्चिन्ह होगये।
🔹यतिराज और उनके आदेष से ७४ पीठाधीश्वर ने अहर्निश श्रीवैष्णवता का प्रचार करनेमें जीवन लगादिया।
🔹सारा भारत श्रीवैष्णवमय होगया।
🔹ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, क्षुद्र सभी अपने अपने धर्म का पालन करते हुये यतिराज की चरण शरण से अपने करोडो पीढ़ियोंके पितरोंके साथ परम दुर्लभ वैकुण्ठ को जाने लगे।
🔹सहस्रगितीमें श्री शठकोप स्वामीजी की “पोलिहा” नामक सूक्ति में “रामानुज स्वामीजी के कारण कलियुग का दोष नष्ट होजायेगा” यह वर्णन सार्थक होगया।
🔹नरक में कष्ट भोगनेवाले जीव भी उनके संबंधीयोंके यतिराज शरण होनेपर वैकुण्ठ प्राप्त करने लगे।
🔹यमराज को कुछ काम ही नही बचा।
🔹यमराज घबराके ब्रह्माजी के पास गया और ब्रह्माजी सभी देवतोओंके साथ रंगनाथ भगवान को पास आकर प्रार्थना किये।
🔹भगवान भी यह देखकर आश्चर्यचकित होगये की संपूर्ण लीला विभूति वैकुण्ठ समान होगयी थी।
🔹सभी जीवोंके काम क्रोध आदि समस्त दोष नष्ट होगये थे।
🔹जो कार्य भगवान भी नही कर सके थे वह मात्र रामानुज संबध से अनायास हो रहा था।
🔹आसेतु हिमालय तक कोई भी नही बचा था जो रामानुज संबंधी ना हो।
🔹भगवान को चिन्ता होगयी की अब लीलाविभूति की कोई आवश्यकता नही रहेगी।
🔹यह सोचकर भगवान ने अपनी लीला निमित्त भगवद्द्वेषी महाबलवान चोलराजा को उत्पन्न किया जो आगे चलकर कृमिकण्ठ नामसे कुख्यात हुवा।