प्रपन्नामृत – अध्याय ५२
श्री वरदान भगवान के द्वारा कुरेशाचार्य को दृष्टिप्रदान
🔹एक दिन यतिराज ने कुरेश स्वामीजी को वरदराज भगवान् का स्तोत्र रचनेकी आज्ञा प्रदान की और कहा की भगवान से नेत्र ज्योति माँगो।
🔹स्तोत्र की रचना करके कुरेश स्वामीजी ने यतिराज को श्रवण कराया।
🔹फिर यतिराज के साथ काँची जाकर यह स्तोत्र वरदराज भगवान को भी श्रवण कराया।
🔹वरदराज ने भगवान् प्रसन्न होकर वरदान माँगने लिये कहा।
🔹कुरेश स्वामीजी ने यतिराज की आज्ञा का उल्लंघन किया और भगवान से “चर्मचक्षु की नेत्रज्योति” की जगह “दिव्यचक्षु की दिव्यदृष्टि” की याचना की तथा वैकुण्ठ धाम मिलनेकी भी याचना की।
🔹 यतिराज दु:खित हुये। यतिराज की ईच्छा थी की कुरेश स्वामीजी को सम्प्रदाय का कैंकर्य करने लिये नेत्रज्योति प्राप्त हो।
🔹वरदराज भगवान ने यतिराज की ईच्छापुर्ति के लिये कुरेश स्वामीजी को नेत्रज्योति भी प्रदान कर दी।
🔹कुरेश स्वामीजी यतिराज तथा वरदराज भगवान का दर्शन करके अत्यन्त आनन्दित हुये।
🔹फिर यतिराज और कुरेश स्वामीजी श्रीरंगम् लौट आये।