प्रपन्नामृत – अध्याय 8
कप्यास श्रुति द्वारा भगवन्नेत्रों की उपमा कमलदल से दी गयी है।
🔻 एक बार रामानुजाचार्य यादवप्रकाश को तेल लगा रहे थे, तब “कप्यास” श्रुति का अर्थ करते हुए यादवप्रकाशने भगवान के नेत्रोंको बन्दर के पायुभाग (नितम्ब) की उपमा दी।
🔻 इस सिद्धान्त विरुद्ध अर्थ को सुनकर श्रीरामानुजाचार्य के आँखोंसे अश्रुधारा बहने लगी।
🔻 यादवप्रकाश ने कारण पूछनेपर रामानुजाचार्य बोले, “आपने ‘कप्यास’ श्रुति का वेदान्त विरुद्ध अर्थ किया है, इसीसे मुझे दु:ख है।”
🔻 क्रुद्ध यादवप्रकाश बोले, “दुष्ट! तुम्ही इस श्रुति का युक्तियुक्त अर्थ मेरे सामने करो।”
🔻 प्रत्युत्तर में रामानुजाचार्य बोले, “जिस वेदान्तमें भगवान को षड्गुण संपन्न बतलाया है उसी वेदान्तमें भगवान के उत्तमोत्तम नेत्रोंकी तुलना बन्दर के पायुभाग (नितम्ब) से भला कैसे की जा सकती है?”
🔻 रामानुजाचार्य आगे बोले, “कम् (जलम्) पिबति इति कपि, अर्थात् सूर्य। तेन आस्यते (क्षिप्यते) अर्थात् सूर्यसे जो खिलता है वह है कप्यास याने कमल।”
🔻 वें आगे बोले, “उसी कमलदस से ही भगवान के नेत्रोंकी उपमा दी जा सकती है।
🔻 क्रोधित हो यादवप्रकाश ने रामानुजाचार्य को चले जाने के लिये कह दिया।
🔻 यह वृत्तान्त रामानुजाचार्य ने आकर काञ्चीपूर्ण स्वामीजी को सुनाया और वरदराज भगवानकी जलसेवा में फिरसे निरत हो गये।