प्रपन्नामृत – अध्याय १०

💠 भगवान वरजराज द्वारा छ: वाक्य प्रदान 💠

🔺 एकबार रामानुजाचार्य काञ्चीपूर्ण स्वामीजी के तरीप्रसाद की अभिलाषा से उन्हे अपने यहाँ प्रसाद पाने के लिये आग्रह किये। काञ्चीपूर्ण स्वामीजी ने निमन्त्रण स्वीकार किया।

🔺 रामानुजाचार्य घरपर नही थे तभी काञ्चीपूर्ण स्वामीजी आये और रामानुजाचार्य की पत्नी श्रीमति रक्षकाम्बा को विनन्ती करके जल्दी प्रसाद पाकर चले गये।
🔺 श्रीमति रक्षकाम्बा बचा हुवा भोजन नौकर को देकर पुन: स्नान करके रामानुजाचार्य के लिये दूसरा भोजन बनाने लगी।

🔺रामानुजाचार्य आये और उन्हें पता चला की रक्षकाम्बानें काञ्चीपूर्ण स्वामीजीके क्षुद्र वर्ण को देखकर ऐसा किया तो वें अति दु:खी हुये, क्योंकी उन्हे काञ्चीपूर्ण स्वामीजी का तरीप्रसाद नहीं मिला।

🔺 रामानुजाचार्य काञ्चीपूर्ण स्वामीजी के पास जाकर निवेदन किये कि वे उन्हें पञ्चसंस्कारित करदें। जिसे काञ्चीपूर्ण स्वामीजीनें अस्वीकार करदिया।

🔺 तब रामानुजाचार्य ने काञ्चीपूर्ण स्वामीजी को ४ प्रश्न पूछे –
१. उज्जीवन के लिये सर्वश्रेष्ठ उपाय क्या है?
२. अन्तिम समयमें भगवत् स्मरण आवश्यक है की नहीं?
३. मोक्ष प्राप्ति कब होती है?
४. मैं किन आचार्य का समाश्रयण करुँ?

🔺 काञ्चीपूर्ण स्वामीजीनें एकान्तमें पंखीसेवा करते हुये वरदराज भगवान से ये प्रश्न पूछनेपर भगवान ने उत्तर दिया:
१. मैं ही परम तत्व और जगतके कारणोंका कारण हुँ।
२. जीव और ईश्वरमें भेद सिद्ध है।
३. मोक्ष के लिये भगवत् शरणागति सर्वश्रेष्ठ उपाय है।
४. मुझे अपने (शरणागत) भक्तोंसे अन्तिम स्मृति की अपेक्षा नही।
५. देह त्याग करनेपर मैं अपने (शरणागत) भक्तोंको परमपद देता ही हुँ।
६. श्री रामानुजाचार्य श्री महापुर्णाचार्य स्वामीजी का समाश्रयण करें।

🔺 काञ्चीपूर्ण स्वामीजी के मुखसे श्री वरदराज भगवान की छ: वाक्य आज्ञा सुनकर प्रसन्न रामानुजाचार्य तुरन्त श्री महापुर्णाचार्य स्वामीजी द्वारा पञ्चसंस्कार ग्रहण करनेकी ईच्छा से श्रीरंगम के लिये प्रयाण किये।

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