प्रपन्नामृत – अध्याय 19
गोविन्ददास का श्रीशैलपुर्णाचार्य स्वामी से समाश्रित होना
🔹श्रीशैलपूर्णाचार्य स्वामीजी कालहस्तिपुर आकर सुवर्ण मुखरी जलाशय के निकट सहस्रगीति का कालक्षेप सुनाने लगे।
🔹वहीं शिवजी की सेवा के लिये पुष्प चुनने गोविन्दाचार्य आये और १४ वें गाथा में सुनें,
“⚡जिन भगवान विष्णु के नाभिकमलसे ब्रह्मा उत्पन्न होते हैं,⚡जो चराचर समस्त जगत् के एकमात्र कारण हैं, ⚡जो समस्त कल्याणगुणगुणाकर अखिलहेय प्रत्यनीक दो चिन्होंको धारण करते हैं उनको छोड़कर दूसरे देवता की पूजा के लिये पुष्प चयन उचित नही है।”
🔹त्वरीत उन पुष्पोंको फेककर श्रीशैलपुर्णाचार्य स्वामीजी के चरणोंमें गिरकर कहने लगें, “मैं भटक गया हुँ।”
🔹इतर शिवभक्तोंने बुलानेपर भी गोविन्दाचार्य उनके साथ नही गये। उन शिवभक्तोंने श्रीशैलपुर्णाचार्य स्वामीजी का विरोध किया।
🔹उसी रात्रिमें शिवजी उन शिवभक्तोंके स्वप्नमें आकर यह आदेश दिये की, “आज पृथ्वीपर शेषजी के अंशसे रामानुजाचार्य, गरुडजी के अंशसे गोविन्दाचार्य, और पाञ्चजन्य के अंशसे दाशरशि अवतार लिये हैं।”
🔹यह बात शिवभक्तोंने श्रीशैलपुर्णाचार्य से कहकर क्षमा याचना की और विरोध ना करते हुये सहर्ष उन्हे गोविन्दाचार्य को सौंप दिया।
🔹तत्पश्चात् श्रीशैलपुर्णाचार्य स्वामीजी श्रीगोविन्दाचार्य का विधिवत् पञ्चसंस्कार करके, सहस्रगीति का अध्ययन कराकर अर्थपंचक विज्ञान को बतलाये।