प्रपन्नामृत – अध्याय २७
यतीन्द्र श्रीरामानुजाचार्य का दरिद्र ब्राह्मण श्री वरदाचार्य के यहाँ आगमन
🔹रामानुजाचार्य की आज्ञा से श्री अनन्ताचार्य वेंकटाचलपर पुष्प-तुलसी का उद्यान लगाकर वेंकटेश भगवान की सेवा करने लगे।
🔹एक बार रामानुजाचार्य चित्रकूृट के समीप सहस्र नामक ग्राम में आरहे थे।
🔹उस ग्राममें उनके यज्ञेश नामक एक धनी तथा वरदाचार्य नामक एक दरिद्र शिष्य रहते थे।
🔹यज्ञेश ने रामानुजाचार्य के आगमन का समाचार लाने वाले शिष्योंका सत्कार नही किया और रामानुजाचार्य के स्वागत की तैय्यारी करने लगा।
🔹वैष्णवोंका सत्कार नही हुवा देख रामानुजाचार्य दु:खी होकर यज्ञेश के यहाँ न जाकर दरिद्र शिष्य वरदाचार्य के यहाँ गये।
🔹वरदाचार्य की पत्नी घरपर अकेली थी और दरिद्रता के कारण उनको प्रसाद पवानेके लिये कोई सामग्री नही थी।
🔹आचार्य सेवा के लिये अपना शरीर बेचना भी उचित समझकर वह ब्राह्मणपत्नी उसी ग्रामके एक महाजन को शरीर देनेका वचन देकर उससे प्रसाद के लिये सामग्री ले आयी।
🔹तदनन्तर रामानुजाचार्य ने भगवान को भोग लगाकर उसे भी प्रसादी प्रदान की।