श्रीरामानुजाचार्य का वैभव (२)
🔹काँचीवासी एक गुंगा बालक अकस्मात् गुम होगया और २ वर्ष पश्चात् प्रगट हुवा। वह अब सुंदर स्पष्ट भाषण करनेवाला होगया था। वह बालक बोला की, “मैं वैकुण्ठ जाकर आया हुँ और रामानुजाचार्य कोई साधारण व्यक्ति ना होकर वैकुण्ठ से अवतरित महापुरुष हैं जिन्होंने लोकरक्षण के लिये इस भूतलपर अवतार लिया है।”
🔹रामानुजाचार्य के विद्यार्थी जीवनमें उनके विद्यागुरु यादवप्रकाश को ब्रह्मराक्षस ने कहा था, “रामानुजाचार्य ने भगवान श्रीमन्नारायण की आज्ञा से अवतार लिया है, इनके आश्रय से ही तुमको भी वैकुण्ठ की प्राप्ति होगी।”
🔹श्री आन्ध्रपूर्णाचार्य ने कहा, “संसार में जो आचार्य पद हैं वह सब यतिराज में सुप्रतिष्ठित है। उनके आश्रय के बिना दूसरा कोई मोक्ष का उपाय नही है।”
🔹कृष्णग्राम के अधिपति तत्वज्ञ श्री बालक स्वामीजी तथा देवराजमुनी इन्होने भी “रामानुजाचार्य ही हम सबके एकमात्र रक्षक हैं” यह कहा था।
🔹कुरेश स्वामीजी के एक शिष्य पुत्रपुत्राचार्य को श्रीवैष्णवोंकी निन्दा करनेकी आदत थी जिसके कारण कुरेश स्वामीजी बहोत दुखी थे।
🔹एक बार कुरेशाचार्य ने उस शिष्य से मन, कर्म, वचन का दान ले लिया।
🔹फिर एकबार जब किसी श्रीवैष्णव के दोषोंके बारेमें मनमें विचार आया तो उन्होने सोचा की “मेरा मन तो कुरेश स्वामीजी को दान किया हुवा है अब मैं कैसे किसी के दोषोंका निरुपण कर सकता हुँ?”
🔹तब वे पश्चाताप पुर्वक शरीर त्याग करनेके लिये तैय्यार हुये तो कुरेश स्वामीजी ने उन्हे ऐसा करनेसे रोका और कहा की, “यदि प्रमादवश तुमसे मानसिक अपचार होगया है तो यतिराज के चरणकमलोंके स्मरण से शीघ्र नष्ट होजायेगा।”
🔹एकबार कावेरी तटपर हुये श्रीवैष्णव सम्मेलन में द्वितीय वेदव्यास के समान कुरेशाचार्य ने वस्त्रोंसहित कावेरीमें स्नान कर दोनों भुजाओंको उठाकर कहा, “समस्त संसार के उद्धारक रामानुजाचार्य ही हैं।”
🔹एकबार शास्त्रार्थ में जीतने के बाद दाशरथि स्वामीजी हारनेवाले श्रीमरीचाचार्यजी को रामानुजाचार्य के पास ले गये और कहा, “आपको हमारे गुरुवर्य श्रीरामानुजाचार्य की शरणमें जाना चाहिये।”
🔹श्रीगोविन्दाचार्य, श्रीकुरेशाचार्य तथा श्रीपराशर भट्टार्यनें भी कहा था की, “अपने लौकीक विद्या, धन, कुल से अपने को कृतार्थ न मानकर रामानुजाचार्य के दिव्य चरणोंके संबंध से ही अपनेआप को कृतार्थ मानना चाहिये।”
🔹व्यासभट्ट नामक श्रीवैष्णव विद्वान ने कहा की, “अगर आपको श्रीभाष्य दुस्तर लगता है तो आप यतिराज के शरणमें जाईये।”
🔹एकबार वरदाचार्य ने अपने शिष्योंको प्रपत्तिमार्ग का उपदेश दिया। प्रपत्तिमार्ग उन्हे दुष्कर लगा तो वरदाचार्य ने कहा, “यतिराज की सेवा करते हुये यतिराज की कथाओंका पठन श्रवण करो तो मोक्ष को प्राप्त कर सकते हो।”
🔹सभी ७४ शिष्योंने रामानुजाचार्य के वैभव को प्रकाशित किया।
जो यतिराज की भक्ति करते हैं वे नि:सन्देह वैकुण्ठ को प्राप्त करते हैं।